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भाषांतर अध्य०१८ ॥१०५६॥
वादित्र वगेरेना नादथी दिशा प्रदेशोने अधिरित करतो आगळ गंधर्वो गान करता आवे छे तथा विलासिनीओ नृत्ऽ करे छे तेने उचराध्य
नेत्रथी जोइ आनन्द पामतो हाथी उपर चडीने दशार्णभद्र राजा भगवान्ने बंदना करवा आव्या. पन सूत्रम्
विशुद्धभावेन भगवान् वदिनः राजा मदहरश्च हर्ष प्राप्ती. अत्रांतरे शक्रेण चिंतितं मत्कृतया महाविभूत्याऽसौ ॥१०५६॥ 15 दशार्णभद्रः प्रतिबोधं यास्यनीति. शक ईदृशीं विभूति विकुर्वितवान्, तथाहि-ऐरावणहस्तिनोऽष्ठौ दंता विकुविताः, दंते दंतेऽष्टाष्टपुष्करिण्यो विकुर्विताः, पुष्करिण्यां पुष्करिण्यामष्टावष्टौ पद्मानि, पद्म पद्मेऽष्टाष्ट पत्राणि, पत्रे
कारण्या करण्याला पवे द्वात्रिंशद्बद्धनाट्यानि. अनयो विभूत्या ऐरावणारूढेन शक्रेण प्रदक्षिणीकृत्य भगवान् वंदितः. तं तादृशं दृष्ट्वा दशाणभद्रेण चिंतितमहो खलु तुच्छोऽहं, यस्तुच्छया विभूत्या गर्व कृतवान्. यत उक्तं-अदिहभद्दा थोवेण वि । हुँति उत्तणाणीया ।। णच्चइ उत्तालमुहो हु । मूसगो वीहिमासज्ज ॥१॥ (अस्या व्याख्या-अदृष्टभद्रा नीचाः स्तोकेनायुप्ताना भवंति मातीत्यर्थः. हु इति वितर्के मषको व्रीहिमासाद्योत्तालमुख उच्चैर्मुखो नृत्यति.)
विशुद्ध भावपूर्वक वंदना करी, साथे आवेलो मदहर पण वन्दन करी हर्ष पाम्यो. आ समये इन्द्रे विचार्यु के-'हुँ मारी समृदि| देखाडीश तेथी दशार्णभद्र राजा प्रतिबोध पामशे' आम विचारी इन्द्रे पोतानी समृद्धि विकुर्वी-पोताना ऐरावण हाथीना आठ दांत विका , दरेक दांते आठ आठ पुष्करिणी, एक एक पुष्करिणीमां आठ आठ पद्म, प्रत्येक पद्मे आठ आठ पान अने पाने पाने बत्रीश बत्रीश नाध्य बान्धेला; आवो विभूति साथे लइ ए ऐरावण हाथी उपर चडीने इन्द्रे आवी भगवान्ने प्रदक्षिणा लइ वंदना करी. आवा इन्द्रने जोह दशार्णभद्रना मनमां ययुके-'अहो! तो तुच्छ छु के जे तुच्छ विभूतिथी गर्व करुं छु.' कहुं छे के
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