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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्य०१८ ॥१०११॥ - न फरे. १ बळी अपरमंत्रीए कयु के-'पोतनपुरना अधिपतिनो वध आणे करो पण कंई श्रीविजय राजानो वध कह्यो तो आपणे उत्तराध्य-4 आजथी सात दिवसने माटे कोइ अपर पोतनाधिपति बनाव्ये, आ उपाय सर्वेए पसंद को पण राजा कहे-मारा जीवितनी रक्षा पन सूत्रम् ॥ करवा माटे अन्य जीवनो वध केम कराय ? त्यारे मंत्रीए का के-यारे आपणे सात दिवसने माटे राजगादी उपर यक्षनी प्रति॥१०११॥ मानो अभिषेक करीए तो केम ? आ सने रुची तेथी सर्वे मळी पोतनपुर राज्य उपर यक्ष प्रतिमानो सात दिवस माटे अभिषेक कया अने पौषधागारमा जइ में साते पौषध कर्या सातमे दिवसे मध्याह्न टाणे आकाशमा अकस्मात वादळां घेराणां अने विजळी चमकवा मांडी आम तेम सबाका यतां यक्षप्रतिमा उपर पडी तेथी यक्षपतिमा विनाश पापी, आठमे दिवसे हुँ पौषधशालामांथी नीकळी खेमकुशळ स्वभवने आच्यो अने ते नैमित्तिकने बोलाची सुवर्ण रत्न आदिकथी तेनी पूजा करी विदाय कों, नागरिक जिनोए फरीथी मारो पोतन राज्य उपर अभिषेक कर्यो ते आजे आ नगरमा महोत्सवन कारण छे आम श्री विजय राना बोली रह्या ते पछी अमिततेजा राजा बोल्या के-निमित्त पण जराय फेर न पडे ते, हतुं अने रक्षणनो उपाय पण अद्भुत गोल्यो. आम कहीने राजा अमित तेजा पोताने स्थाने गया. ___अन्यदा श्रीविजयराजा सुनारया समं बने रंतुं गतः. सुनारया तत्र कनकमृगो दृष्टः, श्रीविजयस्योक्तं स्वामिन् ! ममैनं मृगमानीय देहि ? मम क्रीडार्थ भविष्यति ततः श्रीविजयराजा तद्ग्रहणार्थ स्वयमेव प्रधावितः, नष्टो मृगः, तत्पृष्ठिं राजा न त्यजति. कियंती भुवं गत्वोत्पतितो मृगः, नावता सुनारा कुर्कुटमर्पण दष्टा: पूच्चकार. अहं कुर्कुटसर्पण दष्टा, हा प्रिय ! मां त्रायस्वेति श्रुत्वा श्रीविजयस्त्वरित पश्चादायातः. तावता सुतारा पंचत्वमुपागता. राजा च قناتنا للعمال المثال انها من الفنانات التلال For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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