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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्य भाषांतर अध्य०१८ पन सूत्रम ॥१००४॥ Bilu१००४॥ षण्मासान् यावत्तन्मार्गानुलग्नास्तेन संयमिना सिंहावलोकनन्यायेन दृष्ट्यापि न विलोकिता.. षष्टमक्तेन भिक्षानिमित्तं गोचरप्रविष्टस्य प्रथममेवाऽजातकं तस्य गृहस्थेन दत्त. द्वितीयदिवसे च षष्टमेव कृतं. पारणके प्रतिनीरसाहारुकरणात्तस्यैते रोगाः प्रादुर्भूता:-कंडः १, ज्वरः २, कासः ३, श्वासः ४, स्वरभंगः ५, अक्षिदुखं ६, उदरब्यथा ७, एताः सप्त व्याधयः सप्तशतवर्षाणि यावदभ्यासिताः. चक्रोए तो बाजुबंध कडां वगेरेथी शणगारेला पोताना बे बाहु तथा हार वगेरेथी विभूषित वक्षःस्थळ छेक विवर्ण जेवा जाणी विचार्य के-'अहो ! संसारनी अनित्यता तथा शरीरनी असारता केवी छे ? आटलीज बारमा मारा शरीरनां रूप यौवन तथा तेज नष्ट थइ गया. आ भवमा प्रतिबन्धासक्त यवु अयुक्त छे. शरीरनो मोह मात्र अज्ञान के रूप यौवनादिकनं अभिमान केवल मूर्खता छे भोग सेवा ए एक उन्मादज के. परिग्रह राखवो ए तो झूड वळग्या जेवू छे. माटे ए बधुं पडतुंमकीने परलोकन हित करनार संयम गृहण करूं.' आम विचारी चक्रीए पोताना पुत्रने राज्यपद उपर अभिषिक्त को अने पोते संयम ग्रहण करवा उद्यत यया. त्यारे ते बन्ने देवो बोल्या के-'हे धीर भरतखंडना महानरपति त्रिभुवनमा विख्यात कीर्तिवाला तमे पूर्व पुरुषोनु नियत चरित आचरो छो ते तमे ठीक धार्यु' आम बोलीने ते देवो चालता थया. चक्री पण तेज वखते सर्व परिग्रहनो त्याग करी विरत आचार्यनी समीपे जइ प्रवजित थया. त्यारे स्त्रीरत्न प्रमुख सर्व रत्नो तथा बाकीनी रमणीयो, सर्वे नरेन्द्रो, सर्व सैन्यना लोको, नव निधिो छ मास सुधी तेना मार्गे पाछल लाग्या पण तेना सामे चक्रीए सिंहावलोकन सरखी पण दृष्टि न करी. षष्ठ भक्त नियमथी भिक्षा निमित्त गोचर प्रविष्ट यतां प्रथम तेने एक गृहस्थे बकरीनी छास आपी. बीजे दिवसे पाछु षष्ठ व्रत कयु. पारणामां मांत ताकत For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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