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उत्तराध्य
भाषांतर अध्य०१८
यन सूत्रम् ॥९८२॥
॥९८२॥
| विभ्रमो दृश्यते ? किं वा सत्य एवायं सनत्कुमारः ? यावदेवं चिंतयन्महेन्द्रसिंहस्तिष्टति तावत्पठिनमिदं चंदिना
जय आससेण नहयल-मयंक कुरुभुवणलग्गणे खंभ ॥ जय तिहुभणनाह सण-कुमार जय लद्धमाहप्प ॥१॥ ततो महेन्द्रसिंहः सनत्कुमारोऽयमिति निश्चितवन .
अत्रे सनत्कुमारनुं दृष्टांत कहे छे:-आ भरत क्षेत्रमा कुरुजांगल देशने विषये हस्तिनागपुर नामर्नु नगर छे, तेमां अश्वसेन नामे राजा हतो. तेनी सहदेवी नामे भार्या हती, आ बेयनो पुत्र चतुर्दशस्वप्नमुचित चक्रवर्ती चोथो सनत्कुमार नामनो थयो, आ | सनत्कुमारे मूरिकालिन्दीना पुत्र महेन्द्रसिंह नामना परममित्रनी साये कलाचार्य समीपे सकल कलाभोनो अभ्यास कर्यो. समय पीततां सनत्कुमार युवावस्थाने प्राप्त थयो. एक समये वसंतऋतुमा अनेक राज पुत्रो नया नगर लोकोने साथे लइ सनत्कुमार क्रीडा करवाने उद्यानमां गया त्या अश्वक्रीडा करवा सर्वे कुमारो घोडेस्वार थइ पोत पोताना घोडाने खेलाववा लाग्या. सनत्कुमार पण जलधिकल्लोल नामना पोताना घोडा उपर चढी सर्व कुमारोनी साथे दोडावता हता तेटलामा विपरीत शिक्षा पामेला कुमारना घोडाये एवी गति लोधी के अपर कुमरोना घोडा आगळ पड्या रह्या अने कुमारनो घोडो तो अदृश्य थइ गयो. राजाने खबर थया त्यारे पोताना परिकर सहित तेनी पाछळ चाल्या. आ टाणे प्रचंड वायु वावा लाग्यो तेथी घोडनो मार्ग भग्न थयो त्यारे साथे आवेला महेन्द्रसिं राजानी आज्ञा मागी आडधड मार्गे कुमारनी शोध करतो भयंकर महाटवीमां पेठो, तेमां भटकतां तेने एक वर्ष वीत्यु. एक दिवसे ज्यां थोडोक भूमिभाग जाय छे त्यां तो एक महोदं सरोवर दीर्छ, त्यां तेणे कमलोनो परिमल सूंघ्यो तथा वेणुनादयुत मधुर गीत सांभळ्यू. ज्यां महेन्द्रसिंह आगळ वधे छे त्यांतो पणना टोळाना मध्यमां आवेला सनत्कुमारने जोयो. मनमा
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