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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर gentina अध्य० उत्तराध्य ____ आ भुवनमा उतवळीयामोनुं बळ वरूते आत्मवधने माटेज थइ पडे छे. पतंग पोतानी पांखोना बळवडेज पदीपमा प्रवेश करे | छे'-आवा नागना वचन सांभळी नागराजने शांत करवा माटे जन्हुकुमारे कई के-हे नागराज! आप प्रसन्न थइ क्रोधने शमावो; यन सूत्र 1301 अमारो एक अपराध क्षमा करो. अमे आ कंइ आपने उपद्रव करवा करेलु नथी किंतु अष्टापदनां चैत्योना रक्षणार्थ आ परिखा ॥९६९॥ E (खाइ) करी. हवे फरी अमे एम करीशु नहि. आ सांअळी जेनो कोप उपशांत थयो छे एवो ए ज्वलभ नागराज पोताने स्थाने | गयो, जन्हुकुमारे पोताना भाइओ आगळ एम का के-'आ खाइ जोके दुर्लध्यकोइथी ओळंगी न शकाय तेवी-छे तो पण पाणी विना न शोभे, माटे ए खाइने पाणीथी भरी दइए तदनंतर दंडरत्न बती गंगाने भेदी जन्हुकुमारे जळ लावी खाइने भरी दीधी गंगानो प्रवाह तो खाइ भरातां उपरथी वहीने नागभवने पहोंच्यो. जळ प्रवाहथी त्रास पामी नाग नागिनी समुदाय आम तेम Joi भाग नाश करवा लाग्यो ते जोइने पाछो ज्वलनप्रभनागराज अवधिज्ञानना उपयोगथी जन्हुकुमारादिकनुं कृत्य जाणी कोषाग्निनी नाळाओथी घेरायेलो-'अरे आ जन्हुकुमारादिक महापापीओनो एकवार अपराध में क्षमा कर्यो छतां फरीवार अधिकतर उपद्रव तेओए कों? हवे तो मारे तेओना अविनयन फळ तेओने देखाडर्बुज जोइए' आम विचारी ज्वलनपम नागराजे तेओना वधने माटे नेत्रमा जेने विष रहेलं छै एवा केटलाएक महानागो मोकल्या. ते नागोए ए खाइना जळनी अंदरना मार्गे त्यां जह | बहार नीकळी ए बधा कुमारोने नेत्रोथी जोया के सर्वे कुमारो विषाग्निीथी बळीने राखना ढगला थइ गया. सर्व कुमारोने भस्मीREL भूत थयेला जोइने सैन्यमां हाहाकार थइ रह्यो. मंत्रिए कह्यु-आ बधा तो तिर्थरक्षा करतां अवश्य भावीने लीधे आ अवस्थाने पाम्या, पण ते सर्व सद्गतिनेज पाम्या हशे तेथी तेओनो शोक शुं करवो ? माटे हवे तो अहींथी तुरत प्रयाण करवू अने महाराज A For Private and Personal Use Only
SR No.020857
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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