________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उत्तराध्ययनसूत्रम्
॥६४७॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कीदृश उडुपतिः ? नक्षत्रैर्ग्रहतारकादिभिः परिवृतः, परिवारो जातोऽस्येति परिवारित इति वा पुनः कीदृश उडुपतिः? | प्रतिपूर्णः षोडशकलादिभिर्युक्तः, पूर्णो मासः संसारो यस्याः सा पूर्णमासी, सम्यक्त्वलब्धिरूपायां पूर्णमास्यां बहु| श्रुतरूप उडुपतिर्भव्यजनाहादको भवतीति भावः पुनः कीदृशो बहुश्रुत उडुपतिः ? साधुभिर्नक्षत्रैरिव परिवारितः सहितः पुनः कीदृशो बहुश्रुत उडुपतिः ? प्रतिपूर्णः सर्वधर्मकलाभिः संपूर्ण इत्यर्थः ॥ २६ ॥
जेम पूर्णमासी = पुनमने दिवसे उडुपति=चंद्र जनोने आहाद आपनारो थाय छे. चंदधातु आल्हाद अर्थनो छे तेथी ए धातु|मांथी बनेलो चंद्र शब्द पण = आल्हाद जनक = एवा अर्थवाळो छे, तेम बहुश्रुत पण सम्यक्त्वनी प्राप्ति थवाथी परिपूर्ण चंद्र जेवो थइ भव्यजनोने आल्हादपद थाय छे. चंद्र केवो? प्रतिपूर्ण=सोळे कळाओथी युक्त. बहुश्रुतपक्षमां-पूर्ण थयेल छे मास=संसार जेनो अर्थात् सम्यक्त्व लब्धिरूप पूर्णमासी थतां बहुश्रुत रुपी उड़पति चंद्र पण भव्यजनोनो आल्हादजनक थाय छे. बळी आ बहुश्रुत | चंद्र साधुरूपी नक्षत्रोबडे सदा परिवारित रहे छे अने सर्व धर्म कला वडे संपूर्ण होय छे. २५
जहा से सामाईपाणं । कोट्टागारे सुरखिए || नाणाधन्नपडिपुण्णे । एवं हवइ बहुस्सुए ।। २६ ।। [जा] जेम (नाणाधन्न पडिपुन्ने) धान्यथी भरपूर [सामाइआणं] सामाजिक लोकोनो (से) ते (कोट्टागारे) कोठार [सुरखिए ] सुरक्षित (ए) एज प्रमाणे (बहुस्सु भवइ) २६
व्या०—यथा स इति प्रसिद्धः सामाजिकानां महागृहस्थानां कोष्ठागारो विराजते, तथा बहुश्रुतोऽपि विराजते. | समाजो जनसमूहस्तमर्हतीति सामाजिकाः, तेषां सामाजिकानां कौटुंबिकानां कथंभूतः कोष्ठागारः ? सुरक्षितः, सुत
For Private and Personal Use Only
भाषांतर अध्य० ११
॥६४७॥