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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य यन सूत्रम ॥ ६०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयमात्रमपि मा प्रमादीः कचित्पुण्यवान् संख्यातायुष्को जीवः सप्तभवान् करोति, कश्चिदसंख्यातायुष्को जीवोभवान् वा करोति, एवं ज्ञात्वा प्रमादो न विधेयः ॥ १३ ॥ | संसारी जीव वनस्पतिकाय [वड पीपळा आदि] ने पामेलो उत्कर्षयी अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी प्रमाण काल ( अनंतकायिकापे| क्षाथी ) बसे छे. केटलो काळ? अनंत तथा दुरन्त, एटले जेनो अंत= परिणाम दुष्ट होय एटला काळ पर्यंत संवास करे छे. वनस्प तिकायने पामेला जीवो ते स्थानमाथी उधृत थइने पण प्रायः विशिष्ट स्थान=नरादिभत्र पामता नथी तेथी 'दुरंत' विशेषण क माटे समयमात्र प्रमाद मा करो. बेदियकाय तेंदियकाय० चउरिन्दिकाय० पंचिदियकाय०, द्वींद्रियकायने तथा त्रद्रिकायने अने | चतुरिंद्रियकायने पामेलो जीव उत्कृष्टकाळे संख्यात संज्ञक = असंख्यात वर्ष सहस्रात्मकाळपर्यंत अधिवास करे छे, माटे हे गौतम किंचिन्मात्र समय पण प्रमाद मा करो. पंचेंद्रियकायने पामेलो जीव, उत्कृष्ट सात आठ भव ग्रहणमां संवसे छे माटे गौतम! समयमात्र पण प्रमाद माकरो. पंचेंद्रिय कायने अधिगत = पामेलो जीव उत्कृष्टवडे सात आठ भव ग्रहणकरतो संवास करे छे, अर्थात् सात अथवा आठ भवनुं ग्रहण करे छे, कोइ संख्यात आयुष्यवाळो जीव सात भवनुं ग्रहण करे छे अने कोइक असंख्यातायुष्क जीव आठ भव कहे छे, एम जाणीने हे गौतम समय मात्र पण प्रमाद न करवो. ९-१०-११-१२-१३ देवे desert | कोसं जीवो उसेबसे । इक्केकभवग्गहणे । समयं गोयम मा पमायए ॥ १४ ॥ (देवे) देवपणाने स्था (नेरइर) नारकीपणाने (अइगओ) पामेलो (जीवो उ) जीव [उक्कस'] उत्कर्षथी [इक्किक्कभवग्गाहणे ] एक एक भत्र ग्रहणने वि [सबसे] रहे छे, तेथी [गोयम] हे गौतम! [समय] १४ For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य० १० ॥६०४॥
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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