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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्सराध्ययनसूत्रम् ॥८२२॥ सwww इत्यर्थः पुनः कीदृशः ? अह इति अहनि, राओ इति रात्रौ परितप्यमामः, आर्षत्वादहो अराओ इति स्थितिः. अहो भाषांतर रात्रेऽप्राप्तवस्तुप्राप्तिनिमित्तं चिंतामनश्चितया दग्धः. पुनः कीदृशः? अन्यप्रमत्तः अन्यप्रमत्तः, अन्ये स्वजनमातापितृपु-BEL अध्य०१४ कलत्रभ्रात्रादयस्तदर्थ ममत्तस्तत्कार्यकरणासक्तोऽन्यप्रमत्तः पुनः कीदृशः ? धनमेषयन् , विविधोपायैर्धनं वांछन्नित्यर्थः. एवमेव मूढः पुमान् म्रियते, स्वार्थ किमपि न करोति. पुनः स्थिती पूर्णायामेकदा मृत्युत्वा जरा वा अवश्यं ||८२२॥ प्रामोत्येवेति भावः ॥ १४ ॥ ___आवो पुरुष मृत्यु पामे छे वळी जरा पण पामे छ, केवो पुरुष ? परिव्रजन चारेकोर विषयसुख मेळववा माटे आम तेम भटकनारो, तथा अनिवृत्त काम जेना काम=विषयाभिलाष निवृत्त नथी थया तेवो, अने अहः दिवसना तथा रात्रीमां पण अमाप्त वस्तुनी प्राप्ति माटे चिंतामग्न बनी संताप कर्या करतो एवो; ( अहो अराओ आप प्रयोग छे) तथा अन्य जे माता पिता पुत्र भार्या भाइ इत्यादि स्वजन, तेओना कार्य करवामां आसक्त रहेतो होवाथी अन्य मत्त, वळी धननी एषणबाळो, अर्थात् विविध उपायोबडे धन मेळववानी बांछना करनारो पुरुष एमने एम मरे छे, कंइ पण स्वार्थ साधी शकतो नथी अने उमेद पूरी यतामां तो मृत्यु अथवा जरा अवश्य आवी पहोंचे छे. १४ इमं च मे अस्थि इमं च नस्थि । इमं च मे किच्चमिमं अकिञ्च । तमेवमेवं लालप्पमाणं । हरा हरतित्ति कहं पमाहे॥१५॥ आ मारे छे अने आ मारे नथी, आ में कयु अने आ में नथी कराणु, एवी रीते लवारो करनारा ते (प्रमादी)ने हर-आयुष्य हरनारा रात्री दिवसो हरी जाय छे, माटे प्रमाद शा सार कराय छे! १५ For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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