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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्रम् ॥८२०॥ ८२ | वेदो वेद पाठीने मरणथी नथी रक्षण आपी शकता: वेदविद पुरुषोए कब छ के-'अध्ययन तो कला छे, ब्राह्मणतुं लक्षण तो | आचरण छे आचारमा जे दृढ होय तेनेज ब्राह्मण को छे, बीजा वेद उपर जीविका चलावनार नहि.१' हे तात ! ब्राह्मणो जमाख्या |SET भाषांतर अध्य०१४ होय तो ते तमंतम अंध तमस नरक भूमि भागमा अथवा रौद्र कुंभीपाक रौरवादि नरकमां लइ जाय-पहोंचाडे णं निश्चये तमसनु। पण जे तमस छे ते तमस्त मस कहेवाय छे. जे जमाडेला ब्रामणो कुमार्ग पशुवध आश्रय सेवनादिकमा प्रवृत्त थाय माटे तेवा | Gl ब्राह्मणोने जमाडवु नरक हेतु थाय छे बळी जन्मेला पुत्रो पण त्राण-शरण देनार थइ शकता नथी. नरकपातथी रक्षण नथी करी | शकता. काछे के-'जो पुत्रथीन स्वर्ग मळ होय तो दानादि धर्म निरर्थक छे, तो पछी धन धान्य वगेरेथी शा सारं घरने खाली करवू ? १; 'दुली घो तथा कुकडां, घणा पुत्रोवाळां होय छे तेओने स्वर्गमा पहेलुं स्थान मळे अने वीजा लोको पाछळथी जइ शके.१ त्यारे हवे हे तात ! तमारुं ते वचन क्यो पुरुष माने ? क्यो विवेकवान् पुरुष ठीक माने ? आ उपरथी वेदाध्ययन, ब्राह्मण भोजन, पुत्रोनु घरमा स्थापन; ए त्रणेनुं उत्तर देवाइ गयु; हवे 'भोग भोगवीने जजो' एम जे पिताए कहेल छे तेनुं उत्तर आपे छे. १२ खणमतसुक्खा बहकालावा। पगामइक्वा अनिकामसुक्खा। संसारमुख्खस्स विपक्ख भूया । वाणो अणत्याण उ कामभोगा ॥ १३ ।। कामभोग क्षणमात्र सुख आपनारा अने बहु काळसूधी दुःख देनारा छे; वळी प्रकाम-अत्यंत-दुःखरूप छे अने निकाम-स्वल्प सुखवाळा होवाथी संसार मोक्षना विपक्षकभूत-विरोधि छे अने अनर्थनी खाण छे. व्या०-हे तात! कामभोगा अनर्थानां खानिसहशा वर्तते, अनर्थानामैहिकपारलौकिकदुःखानामुत्पत्तिस्थानसदृशा For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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