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उत्तराध्ययनसूत्रम्
॥८२०॥
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| वेदो वेद पाठीने मरणथी नथी रक्षण आपी शकता: वेदविद पुरुषोए कब छ के-'अध्ययन तो कला छे, ब्राह्मणतुं लक्षण तो | आचरण छे आचारमा जे दृढ होय तेनेज ब्राह्मण को छे, बीजा वेद उपर जीविका चलावनार नहि.१' हे तात ! ब्राह्मणो जमाख्या |SET
भाषांतर
अध्य०१४ होय तो ते तमंतम अंध तमस नरक भूमि भागमा अथवा रौद्र कुंभीपाक रौरवादि नरकमां लइ जाय-पहोंचाडे णं निश्चये तमसनु। पण जे तमस छे ते तमस्त मस कहेवाय छे. जे जमाडेला ब्रामणो कुमार्ग पशुवध आश्रय सेवनादिकमा प्रवृत्त थाय माटे तेवा | Gl ब्राह्मणोने जमाडवु नरक हेतु थाय छे बळी जन्मेला पुत्रो पण त्राण-शरण देनार थइ शकता नथी. नरकपातथी रक्षण नथी करी | शकता. काछे के-'जो पुत्रथीन स्वर्ग मळ होय तो दानादि धर्म निरर्थक छे, तो पछी धन धान्य वगेरेथी शा सारं घरने खाली करवू ? १; 'दुली घो तथा कुकडां, घणा पुत्रोवाळां होय छे तेओने स्वर्गमा पहेलुं स्थान मळे अने वीजा लोको पाछळथी जइ शके.१ त्यारे हवे हे तात ! तमारुं ते वचन क्यो पुरुष माने ? क्यो विवेकवान् पुरुष ठीक माने ? आ उपरथी वेदाध्ययन, ब्राह्मण भोजन, पुत्रोनु घरमा स्थापन; ए त्रणेनुं उत्तर देवाइ गयु; हवे 'भोग भोगवीने जजो' एम जे पिताए कहेल छे तेनुं उत्तर आपे छे. १२
खणमतसुक्खा बहकालावा। पगामइक्वा अनिकामसुक्खा।
संसारमुख्खस्स विपक्ख भूया । वाणो अणत्याण उ कामभोगा ॥ १३ ।। कामभोग क्षणमात्र सुख आपनारा अने बहु काळसूधी दुःख देनारा छे; वळी प्रकाम-अत्यंत-दुःखरूप छे अने निकाम-स्वल्प सुखवाळा होवाथी संसार मोक्षना विपक्षकभूत-विरोधि छे अने अनर्थनी खाण छे.
व्या०-हे तात! कामभोगा अनर्थानां खानिसहशा वर्तते, अनर्थानामैहिकपारलौकिकदुःखानामुत्पत्तिस्थानसदृशा
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