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भाषांतर अध्य०१३
८०२॥JE
॥८०२॥
भोगोने त्याग करवानी तमारी बुद्धि थती नथी किंतु आरंभ परिग्रहने विषये तमे गृद्ध-लोलुप छो. में आटलो विप्रलापः-वाणीनो उत्तराध्य- व्यय-व्यर्थ कयों. हे राजा! हुं जाउहु. तमारी रजा में लीधी छे. ३३ ।। यनसूत्रम्
व्या-हे राजन्नहं गच्छाम्यहं ब्रजामि, मया त्वमामंत्रितोऽसि, मया त्वं पृष्टोऽसि, धातृनामनेकायस्वात्. हे राजन् । तुज्झ इति नव भोगांस्त्यक्तुं बुद्धिर्नास्ति, अनार्यकार्याणां भोगा एव कारणानि संति. अतो भोगाननार्यकार्याण्यपि त्यक्तुं मतिर्नास्ति. पुनरारंभपरिग्रहेषु त्वं गृद्धोऽसि लुब्धोऽसि, आरंभपरिग्रहान्न त्यजसीत्यर्थः एतावान् विप्रलापो विविधवचनोपन्यासो मोघः कतो निरर्थकः कृतः, जलविलोडनवव्यों जातः. तस्मात्कारणादथाहं त्वत्सः शकाशादन्यत्र व्रजामि. तवाज्ञास्तीत्युक्त्वा मुनिर्गतः ॥ ३३ ॥ अथ भुनौ गते सति ब्रह्मदत्तस्य किमभूत्तदाह
हे राजन् ! हवे हुँ जाउँ छ. में तने आमंत्रित कर्यो छे अर्थात् मे तमने पूछी लीधुं छे धातुना अनेक अर्थ होय छ तेथी आमं-11 | त्रित एटले में तारी रजा लइ लीधी छे; हे राजन् ! तारी भोगोनो त्याग करवानी बुद्धि नथी थती, अनार्य कार्यनां कारणो भौगोज DR. थाय छे; आथी भोगरूप अनार्य कार्यो त्यजवा मति नथी यती. फरी तुं तो आरंभपरिग्रहमां गृद्ध छो आरंभपरिग्रहने पण तुं त्यजतो PE नथी. माटे आटलो में विमलाप-विविध वचनोना उपन्यास में मोघ निरर्थक कर्यो. पाणी बलोचवा जेवो व्यर्थज थयो. तेथी हवे all हुं तमारी आगळथी अन्यस्थाने जाउं छं. तमारी आज्ञा छेज-आटलुं बोली चित्रमुनि गया. ३३
मुनि गया पछी ब्रह्मदत्तनुं शुं थयु ? ते कहे छे.पंचालरायावि य बमदत्तो । साहुस्स तस्सा वयणं अकाउ ॥ अणुत्तरे भुंजिय कामभाए । अणुत्तरे सो नरए पविष्टो॥
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