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उत्तराध्ययनसूत्रम्
भाषांतर अध्य०१३
॥८००॥
॥८.०॥
हे साधो ! जेम कोइ थोडं जळ अने घणा कादवाळा जलाशयमा गग्न चेलो हाथी तीर देखे छे तो पण कोठे आवतो नथी | तीर सामे छे छतां तटने प्राप्त नथी थतो. वीर तो दूर रापण वचमा स्थळ जेवी उंची भूमि उपर पण नथी आवी शकतो एम आ दृष्टांतथी अमे=अमारा जेवा काम गुण शब्द स्पर्श रूप रस गंधादिकमां गृद्ध-लोलुप बनेला भिक्षु-साधुना मार्ग-साधुना आचारने नथी अनुसरता, शुं करीये ? अमे विषयी थया तेथी जाणता छतां पण अजाण जेबा रह्या. ३० अचेइ काला तुरयंति राईओ। नयावि भोगा पुरिसाण निचो॥ उचिच्च भोगा पुरिसंचयंति। दुमंजहा खीणफलं वपक्खी काळ चाल्यो जाय छे. रात्रीयो उतावळ करे छ; पुरुषोना भोगो पण नित्य नथी कारणके भोगो पुरुषो पांसे आवीने पाछा पुरुषने त्यजी दीये छे. जेम वृक्षमा रहेता पंखी ए वृक्षनां फळ क्षीण थाय त्यारे ते द्रुम वृक्षने त्यजे छे. ___ व्या०-अथ मुनिः संसारस्य अनित्यत्वेन उपदेशं ददाति. हे राजन् ! कालोऽत्येति अतिशयेन गच्छति. कालस्य किं याति? आयुर्यातीत्यर्थः. रात्रयस्त्वरयंति उत्तालतया व्रजति. हे राजन् पुरुषाणां भोगा अपि अनित्याः, भोगाः पुरुषमुपेत्य स्वेच्छया आगत्य पुरुषं त्यजंति. पुरुषा यद्यपि भोगांस्त्यक्तुं नेच्छंति, तथापि भोगाः स्वयमेव पुरुषांस्त्यजंतीत्यर्थः के किं यथा ? पक्षिणः क्षीणफलं वृक्षं यथा त्यति. ॥३१॥
हवे मुनि संसारना अनित्यत्वनो उपदेश करे छे-हे राजन् ! काळ तो अत्यंत वह्यो जाय छ; (काळ एटले आयुष्य चाल्यु जाय छे.) रात्रीयो उतावळी थाय छे, झडपथी चाळी जाय छे. हे राजन् ! पुरुषोना भोगो पण अनित्य छे, भोगो पुरुषने मळोने स्वेच्छाथी आवीने पाछा पुरुषने त्यजी दीये छे जोके पुरुषो तो भोगने तजवा इच्छता नथी पण भोगो पोतेज पुरुषाने तजी दे छे
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