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भाषांतर अध्य०१३
॥७९७॥
हे राजन् ! नरस्य प्राणिनो जीवितमायुःप्रमाणमप्रमादं यथा स्यारथा कर्मभिर्मत्यवे उपनीयते. पुनर्जीविते सत्यपि उत्तराध्ययनसूत्रम्
| नरस्य वर्ण शरीरसौंदर्य जरा हरति, वृद्धावस्था रूपं विनाशयति. तस्माद्ध पंचालराज! हे पंचालदेशाधिप! वचनं
मम वाक्यं शृणु ? महालयानि महांति मांसभक्षणादीनि कर्माणि त्वं मा कार्षीः? ॥ २६ ॥ अथ नृपतिराह॥७९७॥
हे राजन् ! नरमाणीना जीवित आयु प्रमाणने जरा पण प्रमाद गफलत न थाय तेची रीते कर्मोए मृत्यु समीपे लइ जवाय छे, जीवित छतां पण मनुष्यना वर्ण शरीर सौंदर्यने जरा हरी ले छे. वृद्धावस्था रुपनो विनाश करे छे, माटे हे पांचाल देशाधिप ! वचन मारुं वाक्य सांभळ. महालय महोटां मांस भक्षणादि कर्मो तुं मा करीश. २६ आ सांभळी राजा बोल्योअहंपि जाणामि जहेह साह । जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं ॥ भोगा इमे संगकरा हवंति । जे दुजया अज्ज अम्हारिसेहि हे साधो ! आ संसारमा जेम छे ते हुपण अधुजाणुछु, के जे तमे मने आ वचनवडे शीखव्यु. आ गधा भोग संगकर संसार | पंधनकारक होय छे के जे आजे अमारा जेवाये दुर्जय होय छे. २७
व्या०--हे साधो ! इह जगति यथा वर्तते तथाहमपि जानामि, यत्त्वं मे मम एतद्वाक्यं साधयसि शिक्षांस, J| शिक्षारूपेण साधु कथयसि, परं किं करोमि? इमे प्रत्यक्ष भुज्यमाना भोगाः संगकरा भवंति बंधनकरा भवंति. कीदृशा
इमे भोगाः? हे आर्य ये भोगा अस्मादृशैर्गुरुकर्मभिर्दुर्जया दुस्त्याज्या:. ॥ २७ ॥ BEL हे साधो ! आ जगत्ने विषये जेम व छे तेम हुँ पण वधुं जाणुं हूं, जे तमे मने आ वाक्य शीखवो छो, शिखामणरूपे सारं |
| कहो छो. पण शुं करूं? आ प्रत्यक्षभोगवाता भोगो संगकर थाप हे बंधनकारक बने छे. केवा ? आर्य जे भोगो अमारा जेवा गुरु
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