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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा परस्पर आदरभाव हतो. ५ उत्तराध्यदासा दसन्ने अण्णे । मिया कालिंजरे नगे ॥ हंसा मयंगतीराए । सोवाग कासिभूमिए ॥ ६॥ भाषांतर पनसनम अध्य०१३ BELI दस ने] दशार्ण देशमा [दासा) आपणे दास [आसि] हता, कालिजरे नगे] कालिजर पर्वत उपर (मिमा) मृगो थया [मयंगती॥७७७॥ राए मृतगगा नदीने काठे (हसा) हसो थया हता. [कासभूमिए] काशी देशमा (सोवागा) चंडाळ थया हता. ६ ॥७७७॥ व्या-कच अभूतां तत्स्थानमाह-आवां दशार्णदेशे दासो आस्व, कालंजरनाम्नि नगे पर्वते मृगौ आस्व, पुन- TH मृतगंगानदीतटे हंसी आवां आस्व. काशीभूम्यां वाराणस्यां चांडालावभूवाव. क्यां थया हता? ते स्थानको कहे छे-आपणे बेय दशार्णदेशमां दास थया कालंजर नामना पर्वतमां बेय मृग थया, फरी | मृतगंगा नदीने तटे आपणे हंसो अवतर्या अने काशी भूमि-वाराणसीमां चांडाळ थया हता, ६ देवा य देवलोगंमि । आसि अम्हे महदिया । इमा णो छहिया जाई । अन्नमन्त्रेण जाविणा ॥ ७॥ [य] त्यारपछी (देवलोगम्मि) देवलोकमां (अम्हे) आपणे [महहि आ] महद्धिक [देवा] देवो (असि) थया हता (इमा) आ (अनमनेण) परस्परवडे (जा) जे (विणा) वियोगवाली (णो) आपणी (छडिआ) छट्ठी (जाइ) जाति थइ छे ७ ___ व्या०-पुनस्ततश्चांडालजन्मनः परं भो भ्रातः 'अम्हे' आवां देवलोके सौधर्मदेवलोके महर्दिको देवावभूव. हे of भ्रातः णो इत्यावयोरन्योन्ययावनिका परस्परसाहित्यरहिता परस्परवियोगसहिता षष्टिका जातिरियं प्रत्यक्षा जाता. | इति श्रुत्वा मुनिराह For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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