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उत्तराध्य.
'आपर्नु आ वचन तो युक्त छे कारण के आप तो मारा पति उपकार भावनायी कहो छो, परंतु आ मनुष्यता अति दुर्लभ छे, IK पनसनम आयुष्य ते हमेशां पडतुज जाय छे लक्ष्मी चंचळ छे धर्म बुद्धि पण अनवस्थित हमेशां एक सरखी न रहे तेवी-छे. विषयो परिणामे | अति कडवा हे, वळी विषयासक्त जनोने नरकपात निश्चितज छे अने मोक्षनुं परमवीनभूत विरतिरुपी रत्न अनि दुर्लभ छे, एनो JE
अध्य०१३ ॥७६९॥
त्याग तो नरकपातनो हेतु छे माटे भाइ! गण्या तण्या दिवसोना राज्यनु आश्रयण करवु ए विद्वान् तत्त्वदर्शीना चित्तने आडाद | ॥७६९॥ arliनहीं आपी शके तेथी कुत्सित अभिप्रायनो परित्याग करी पूर्वभवे अनुभवेला दुःखोने याद करो, जिनवचनरूपी अमृत रसनुं पान
| करो, अने तेणे दर्शावेला मार्गे चाली मनुष्य जन्मने सफळ करो.' . । स प्राह भगवन्नुपनतत्यागेनाऽदृष्टसुखवांछाऽज्ञानतालक्षणं, तन्मेवमादिश? कुरु मत्समीहित? मुनिराह संसार| सुख भुक्तं परभवे महते दुःखाय भावीति तत्यागः कार्यते. एवं मुनिना वारंवारमुक्तोऽपि यदा चक्रवर्ती न प्रतिधु| ध्यते, तदा मुनिना चिंतितं, आः ज्ञातं, पूर्वभवे सनत्कुमारचक्रिस्त्रीरत्नकेशसंस्पर्शनजाताभिलाषातिरेकेण संभूतभवेallsमुना मया निवार्यमाणेनापि चक्रवर्तिपदवीप्राप्तिनिदानं कृतं, तस्येदृशं फलं. अतः कारणादसौ दुष्टाध्यवसायो जिन
वचनानामसाध्य इत्युपेक्षितः, मुनिस्ततो विजहार, क्रमेण च मोक्षं गतः. चक्रिणोऽपि प्रकामं सुखमनुभवतः कियान कालोऽनीतः.
आ वचनो श्रवण करी चक्री बोल्या के-'हे भगवन् ! माप्त थयेला सुखनो परित्याग करी अदृष्ट सुखनी वांछा करवी एतो अज्ञान लक्षण कहेवाय माटे एवो उपदेश मा करो अने मारी मरजी प्रमाणे करो तो ठीक.' मुनि कहे-'भोगवेलु संसारमुख परभवे
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