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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir او भाषांतर अध्य०१३ IBE ॥७१४॥ ३ तस्यामेवव्यासक्तोऽभूत, निजपत्नीव्यभिचारिचरितं चांडालेन ज्ञातं, नमुचिमारणोपायस्तेन चितितः, पितुरध्यवसायउत्तराध्य |स्ताभ्यां ज्ञातः,उपकारप्रीतिचरिताभ्यां स नमुचि शितः,ततो नष्टःस क्रमेण हस्तिनागपुरे सनत्कुमारचक्रिणो मंत्रीजातः. पनसूत्रम् ॥७१४॥ PE तदनंतर वाराणसी पुरीमा महोटी समृद्धिवाळा भूतादिन्न नामना चांडालना पुत्र थइ अवतर्या. क्रमे उत्पन्न ययेला ए बेयना चित्र तथा संभूत एवा नाम राख्यां. आ बेय चित्र तथा संभूत बेय भाइओ एक बीजा परस्पर प्रीतिवाळा हता. आ समये वारा|णसी नगरीमां शंख नामे राजा राज्य करता हता तेनो मंत्री नमुचि नामे हतो, तेणे एक वखते राजानो अपराध कर्यो तेथी कोपेला | रजाए ए मंत्रीनो वध करवा भूतादिन्न चांडालने सोंप्यो, भूतदिन चांडाले ते मंत्रीने कह्यु-'हे मंत्रिन् ! जो तमे मारा घरना भोंय रामां रही मारा बे पुत्रो छे तेने भणावो तो तमने हुं बचावू अने मारु नहिं? मंत्री जीवदानी खातर आ वात कबूल राखी. Jहवे चांडालना घरमा भायरामां रही ते मंत्री चित्र तथा संभूतने भणावया लाग्यो; चित्र तथा संभूतनी माता मंत्रीनी परिचर्या करे तेमांत्री ए बाइमां आसक्त थयो. मंत्रीनी साथे पोतानी स्त्रीनुं व्यभिचार चरित चांडालना जाणवार्मा आवतां तेणे मंत्रीने and मारवानो उपाय चितव्यो. पोताना पितानो आ विचार बेय पुत्रो जाणी गया. पोताना उपर भणाववाना उपकारने लीधे तेना प्रति प्रीतिवाळा ए बन्ने चांडाल पुत्रोए नमुचिने भागी जवानी प्रेरणा करी आ उपरथी नमुचि मंत्री त्यांथी नाठो ते क्रमे करी हस्तिनागपुरमा जइ सनत्कुमारचक्रीनो मंत्री थयो. इतश्च ताभ्यां मातंगदारकाभ्यां चित्रसंभूताभ्यां रूपयौवनलावण्यनृत्यगीतकलाभिर्वाराणसीनगरीजनः प्रकामं له داود العليا للاعمال يعود بعد علاقة For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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