SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥३७॥ व्या०-अयानंतरं यः संवृतः पंचावनिरोधको निक्षुः सर्वदुःखमहीणे मोक्षेऽथवा देवे देवलोके, तयोईयोः स्थानयोर्मध्येऽन्यतरस्मिन्नेकस्मिन् स्थाने स्यात् , कीदृशो देवः स्यात् ? महर्द्विको महती ऋद्धिर्यस्य स महर्दिकः ॥२६॥ JEभाषांतर - अपयन५ अर्थः-अथ-अनंतर जे भिक्षु, संवृत-पंचाश्रवनिरोधक-(जीवरूप तळावमा कर्मरूप पाणी भरवानां गरनाळां जेवां द्वारमिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय तथा अशुभयोग, आ पांच आश्रव कहेवाय छे. ए पांचे आश्रवनो निरोध अटकाव करे तेवो ॥३७७॥ संवरसंपन्न साधु संवृत कहेवाय.) होय ते सर्वप्रकारनां दुःखोथी पहीला-रहित एवा मोक्षमा अथवा देवलोकमां, ए बेमांना अन्यतर एक महोटी समृद्धियुक्त स्थानमां स्थित थाय ॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाई। जुइमंताणुपुर्वसो ॥ सामाइन्नाइ जक्खेहिं । आवासाई संसिणो ॥ २६ ॥ दीहाउया इट्ठिमंता। समिद्धा कामरूविणो ॥ अहणोववन्नसंकासा । भुजो अच्चिमालिप्पभा ॥२७॥ ताणि ठाणाणि गच्छंति"। सिक्खिता संयम तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा । जे संतिपरिनिव्वुडा॥ मूलार्थः-(उत्तराई) उपर वर्तता पवा अनुसर विमान नामना (आबासाई) आवासो (अणुपुचसो =अनुक्रमे (विमोहाइ -मोहरहित छे, तथा (जुइमता)=अधिक कांतिवाना तथा (जक्खेहि)-देवोए करीने (समाइण्णाई) व्याप्त छे, पण (जसंसिणो यशस्वी छे ॥२६॥ (दीहाउआ )-दीर्व आयुण्यवाळा होय छे, तथा ( इडिमता )-समृद्धिवाळा छे, तथा (समिद्धा) अत्यंत देदीप्यमान होय छे, तथा (कामरूविणो)-इच्छा प्रमाणे रुप करनारा छे, तथा (आहुणोववन्नसंकासा जाणे इमणां उत्पन्न थयेला होय तेवा निरंतर तथा (भुजोअश्चिमालिभा)-सूर्यसमान कांतियाळा होय छे ॥२७॥ (जे)-जेओ (संतिपरिनिबुडा)-शांतिवडे निवृत्ति पामेला (मिक्वाए) For Private and Personal use only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy