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उत्तराध्यपन सूत्रम्
भाषांतर अध्ययन५
॥३७५॥
मूलार्थः-[सही श्रद्धावान (आगाहि)-गृहस्थो [सामाइ अंगाह]-सामायिकना अंगोने [कारण]-कायावडे पण [फासएस्पर्श करे. तथा (दुहओ पक्ष) बन्ने पक्षमा (पोसह) पौषधने (पगराइदिवसे अथवा रात्रिए पण [न हावए हानि न पमाडे. ॥२३॥
व्या०-अगारी गृहस्थः सामायिकांगानि सामायिकस्यांगानि सामायिकांगानि निःशंकितनिःकांक्षितनिविचिकित्सितामूढदृष्टिप्रमुखाणि कायेन स्पशति, कीदृशः सन ? श्रद्धी श्रद्धावान सन , पुनर्गृहस्था, उभयोः शुक्लकृष्णपक्षयोः पौषधं सेवते, चतुर्दशीपूर्णिमामावास्यादिषु पाषध आहारपौपधादिकं कुर्यात् . एकरात्रिमप्येकदिनमपि न हापयेत् , न हानि कुर्यादित्यर्थः. रात्रिग्रहणं दिवा व्याकुलतायां रात्रावपि पौषधं कुर्यात् , चेदेवं न स्या| त्तदा चतुर्दश्यष्टम्युद्दिष्टा, महाकल्याणकपूर्णिमाचतुर्मासकत्रयस्य दिवसे पौषधं कुर्यात् , सामायिकांगत्वेनैव सिद्धे भेदेनोपादानमादरख्यापनार्थम् ॥ २३ ।।
अर्थः-अगारी गृहस्थ श्रावक, सामयिकांग=निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा तथा मूढदृष्टि वगेरेने काय-शरीरे करी स्पृशे छे. केवो रहीने ? श्रद्धी श्रद्धावान् , तेमज बेय पक्षना पौषधने सेवनारा चउदश, पूर्णिमा अमावाश्या आदि पौपध बराबर करे, तेमां एक रात्री के एक दिन पण छोडे नहिं, अहीं रात्री शब्दनुं ग्रहण-दिवसे व्याकुलता थती होय तो रात्रीमां पण पौषध करे, कदाच एम न बनी शके तो चतुर्दशी अष्टमी महाकल्याणक पूर्णिमा चतुर्मासकत्रयना दिवसे पौषध करवो. आ पोषध | पाळवार्नु सामायिकना अंगरूपे सिद्ध होवा छतां भेदथी ग्रहण तेमां अधिक आदर दर्शाववा माटे करेल छे ।। २३ ।।
एवं सिक्खासैमावन्ने । गिहवामेवि सुचए मुच्चई छविपवाओ । गच्छे जैक्खसलोगयं ॥ २४॥
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