SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie उत्सराध्यपन सूत्रम् भाषांतर अध्ययन५ ॥३७३॥ ॥३७३॥ चीराजिणं नंगिणिणं । जंडी संघाडिमुंडिणं ॥ एयाईपि' ने ताइंति दुस्सीले परियागयं ॥ २१ ॥ मूलार्थ:-(चीराजीण)-चीर-बल्कल (नगिणिण)-नमपणु तथा [जडी) जटाघारीपणु तथा (संघाडि) चखना टुकडा सांधीने करेल जे कथा. तथा (मुंडिण) मुंडपY (एआई पिसर्व द्रव्यलिङ्गो पण (परिआगय) दीनाना पर्यायने पामेला ते (दुस्सील-कुशीलीयानु (न ताईति) रक्षण करता नथी ॥ २१ ॥ व्या०-एतानि सर्वाणि द्रव्यलिंगानि 'परियागयं' प्रव्रज्यां गतं दीक्षां प्राप्तं, अर्थात् द्रव्यलिंगिनं दुशीलं न त्रायते संसारात् , दुःकर्मविपाकाहा न रक्षति, एतानि कानि लिंगानि तान्याह-चीरागि बकुलानि बकुलचीरधारित्वं, अजिनं चर्मधारित्वं नगिणिणं नग्नत्वं, जहीति जटाधारित्वं संघाटिन्वं वस्त्रसंघाटोत्पन्ना, त्या युक्तत्वं कंथाधा|रित्वं, मुंडिणं मुंडत्वं, एतानि सर्वाणि द्रव्यलिंगानि न मोक्षदानि भवतीत्यर्थः ।। २१ ।। अर्थः-आ वां व्यलिंग-जेबांके-चीरबल्कलचीरधारिपणु, अजिन-मृगचर्मधारिख, नगिगिण=नम्रपणुं, जटाधारिख, संघाटित्व, वस्त्रखंडथी बनेली कथा धारण करवी, मस्तके मुंडित थQ, इत्यादि सर्व द्रव्यलिंग, दुष्टशील प्रत्रज्यागत दीक्षाप्राप्तने त्राण नथी देता. अर्थात् दुराचारी साधुने ए द्रव्यलिंग दुष्कर्मविपाकथी रक्षण नथी आपी शकतां नो पछी मोक्ष तो क्याथीज आपी शके. पिंडोलंगोवि दुस्सीले । नरंगाओ न मुच्चई ॥ भिक्खाए वा गिर्हत्थे वो। सुव्वए कैमई दिवे ॥ २२ ॥ मूलार्थः-(पिंडलोपब्ब)-पिंडने सेवनार एवो पण ( दु:स्सीले )-दुःशीळीयो [ नरगाओ)-नरक थकी (न मुच्चर मुकातो नथी. (भिक्खाए वा)-भिक्षुक निहत्थे वा]-गृहस्थी होय परंतु जे (सुपए)= अतिचार रहित व्रतवाळो होय ते (दिव) स्वर्गे [कमइ) जायछे | For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy