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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्या-ततः स मृो मरणांते भयात् संत्रसते संत्रासं प्राप्नोति, अकाममरणं नियते, म्रियमाणः सन् शोक उत्तराध्यविदधाति, क इब ? धूर्तो वातकारी कलिना गृतदोषेन जितः, केनचित्ततोऽधिकेन दुष्टेन जितो गृहीतद्रव्यः सन् शो भाषांतर पन सूत्रम् चते, तथा शोचत इत्यर्थः. अनेन सह मया किमर्थ क्रीडा कृता ? अहं हारितः ॥ १६ ॥ २७ अध्ययन५ ॥३६९॥ ___अर्थ:-तदनंतर ते मूर्ख मरणांत भयथी संत्रास पामी, अकाममरण प्राप्त थाय छे मरतीवेळाये जेम कोइतकार जुगटिओ ॥३६९॥ Joil कलि-गृतदोषथी, अर्थात् कोइ कपटी जुगारीए जीतीलेतां सघळू द्रव्य हराइ जवाथी शोक करे-'में आनी साथे रमीने बधुं | द्रव्य गुमाव्यु' आम शोक करे छे. ॥ १६ ॥ एयं अकोममरणं । बालाणं तु पवे इयं ॥ एत्तो सकाममरण । पंडियाण सुह" मे ॥ १७ ॥ मूलार्थः-(प)-आ पूर्व कां ते (अकाममरण')-भकाममरण (बालाण तु अज्ञानीओनुज छे. (एत्तो)=दवे (पंडिआण)-पंडितोनु (सकाममरण')-सकाममरण कोने होय छे ते (मे)-मारा पासेथी (सुणेह)-तमे सांभळो ॥ १७ ॥ व्या-पालानामकामरणमेतत्प्रवेदित, तुशब्दो निश्चयाथै, मूर्खाणामेवाकाममरणमित्यर्थः, तीर्थकरैः कथितं इतः | प्रस्तावादनसरं मे मम कथयतः पंडितानां सकाममरणं यूयं शृणुन ? ॥ १७ ॥ ___ अर्थ:-बाल अज्ञानी जनोनुं अकाममरण प्रवेदित कर्यु, अर्थात् निरूपण करी देखाडयु. 'तु' शब्द निश्चयार्थमा छे मूल्नु पवीरीते अकाममरण थाय छे, एम तीर्थकरोए कहेल हे. हवे आ प्रस्तावने अनंतर पंडितोर्नु सकाममरण जे ई कहूं ते तमे श्रवण करो. For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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