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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर अध्ययन५ ॥३६८॥ धुरि भग्ने सति शोचति, चिंतयति शकटभंगस्य शोकं करोति, यतो धिग्मामहं जाननपि शकटभंगकष्टमवाप्तवान्. उत्तराध्य अर्थः-यथा जेम कोइ शाकटिक गाडांवालो सम-सरखो महापथ केतां राजमार्ग छोडीने विषम वसमे मार्गे उतरी गाडानो यन सूत्रम् | धरो भांगे त्यारे शोक करे छे-'अरे मने धिक्कार छे, जाणी जोइने में अवळे मार्गे उतरी धरो भाग्यो' आम मनमा पश्चात्ताप करे छे. ॥३६८॥ DEQवं धम्म विउँकम्म । अर्हम्म पडिवेजिया ॥ बाले मच्चुमुहं पत्ते । अक्खे भंग्गे व सोयई ॥१५॥ मूलार्थः-(एव)-पज (धम्म) धर्मने (बिउकम्म)-उलंघन करीने (अहम्म)=अधर्मने-पापने (पडिवजिा )-अंगीकार करीने (अक्खे भग्गे व-धरी भांगे सते रथकारनी जेम (मच्चुमहं पत्ते)-मृत्युना मुखने पामेलो एबो (याले)=अक्षानो (सोभइ)-शोक करे छे ॥१५॥ व्या-एवमममुना प्रकारेण धर्म व्युत्क्रम्य विशेषगोल्लंघ्याधर्म प्रतिपद्य बालो मूर्यो मृत्युमुखं मरणमुख प्राप्तः | सन् शोचते शोकं कुरुते, क इव ! अक्षे भाग्ने शाकटिक इव ॥ १५ ॥ ___ अर्थः-एम-एज प्रकारे धर्मनो व्युत्क्रमकरी खासरीते धर्मनु उल्लंघन करी अधर्मने मार्ग उतरी बालमूर्ख मृत्युमुख प्राप्त थइने शोक करे छे जेम अक्षधरो भांगतां शकट वाळो शोक करे तेन. ॥ १५ ॥ तओ से मरणं तंमि । बोले संतस्तई भया ॥ अकॉमरणं मरइ । धुत्तेवा कलिणा जिए" ॥ १६ ॥ मूलार्थः-(तमओ)-पछी (से) ते (बाले) अज्ञानी (मरणतंमि)-मरणांत प्राप्त थये सते (भया)=नरकना भयथी (संतम्सइ) त्रास पामे छे, (अकाममरण)-अकाममरणवडे (मरहमरे छे, अने (कतिणा)-एक दाववडे (जिए)-पराजय पामेला पवा (धुसे वा)-जुगारीनी जेम शोक करे ॥ १६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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