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मांपेक्षी स्वकृतकर्नविचारक इत्यर्थः॥ ११ ॥ उत्तराध्य-4 अर्थ:-ते अष्टविधकर्मनी संचय करी आतंक रोगोवडे स्पृष्ट वेराइ ग्लान-खिन थाय छे तेमज परलोकथी अति भयमानी भाषांतर पन सूत्रम् परिताप पामे छे. केमके ते पोताना कर्मसामु जुए छे. अर्थात् ज्यारे रोगादिग्रस्त बने छे त्यारे मनमा जाणे छे जे • आJE
अध्ययन५ ॥३६६ मारा पोतानांज कर्मोनांज कर्मोनो विपाक छे' में पूर्वे जे अशुभ कर्मो करेला तेथी हुँ परलोकमां पण दुःखी थइश' आम
॥३६॥ पोतानाज कौनो विचार लइ संताप कर के. ॥ ११ ॥ सैंया में नरएं ठाणा । असोलाणं च जो गई ॥ बालोणं कूरकम्माणं । पैगाढा जत्थं वेयगा ॥ १२ ॥
मलार्थ:-(मे) में [नरप)-नरकने विषे रहेला (ठाणा) स्थानो [सुआ)-लांभळ्या छ, [ब]तथा (असिलाण)-भ्रष्टाचारीओनी (जा)-जे DUI (गह) गति थाय छे, के (जत्थ) जे गतिमा [करकम्माण) क्रूर कर्म करनारा (बालाण)= अज्ञानी (पगाढा) उत्कृष्ट एबो (वेअणा)-वेदना धाय छ
व्या-मे मया नरके स्थानानि श्रुनानि, या गतिर्नरकादिः, अशीलानां कुशीलानां गतिर्विद्यते, यत्र यस्यां गतौ फरकर्मणां बालानां मूर्खाणामात्महितविध्वंसकानां प्रगाढा वेदनास्ति ॥ १२ ॥ । अर्थ:- नरकमांना स्थानो सांभळ्यां. बळी अशील शीलभ्रष्ट कुत्सित आचरण करनारनी जे गति थाय ते पण जाणी, | यत्र-जे गतिमां क्रूरकर्म करनारा पालम्लों के जेमो पोतानाज हितनो स्वयं विध्वंस करे छे तेओने त्यां नरकमां पगादम्पर्मभेदक वेदना थाय छे. ॥ १२॥
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