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भाषांतर अध्ययन५
अर्थः-काय-शरीरे तथा वचने मत्त; अर्थात् शरीरना मदयी जीवोने दमे तथा वचनना मदथी लोकोने तरछाडे, विशधनमा उत्तराध्य- | गृद्ध एटले अति लोभी पुनः स्त्रीओमां पण गृद्ध-लोलुप कायाना मदमां ज्यां त्यां'हुरूपवान् ' 'हुँ बलवान ' एम कहेतो पन सत्रम् २ फरे, तेम वचन मदमां'वक्ता''हुँ विद्वान् ' इत्यादिक पोतानाज गुण गाया करे, मदोन्मत्त बनी सर्वत्र 'हुंज धारणादि॥३६५॥
शक्तिमान् छु' आम मनमा चिंतन करतो दुहुनोति चेय प्रकारे रागद्वेषवडे मलनो संचय करे छे, केनी पेठे जेम शिशुनाग=अणशिया (द्वींद्रियजीवविशेष ) चोमासामा नीक के जेने भूनाग कहे के ते चेय प्रकारे मृतिकानोज संचय करे छे. तेनुं शरीर | बहु सुंचालु होय छे तेथी बहार माटीथी लीपातो जाय छे अने अंदर पण माटी खातो जाय छे. अने मृत्तिकाथी बहार नीकळे
| तो मूर्यना तापथी सुकाय अने तरफडीने विनाश पामे एटले विनाश पामीने पण माटीमांज उमेरो करे छे तेम ए मूर्ख पण | Jt | कर्ममलनेज वधारे छे एज कर्भवडे पोते उत्पन्न थाय छे पाछो कर्ममलनीज वृद्धि करतो रहे छे. ॥१०॥
तेओ पुटो आयंकेणं । गिलाणो परिप्पड़ ॥ पंभीओ परलोगैस्स । कमाणुप्पेहि अप्पणो ॥ ११ ॥ | मूलार्थ:-तिओ) पछी (आयंकण)-मृत्य करनारा रोगवडे (पुठो पराभव पामेलो. तथा (गिलाणो)-ग्लान, तथा (परलोगम्स)-परलोकथी भय पामेलो, तथा (अपणो) पोताना (कम्माणु-पेहि अशुभकर्मनो विचार करतो ते मनुष्य पिरितप्पड़ खेद पामे छे. ११ ___व्या०-ततोऽष्टकर्ममलसंचयादनंतरमातंकेन रोगेण स्पृष्टः सन् ग्लानः ग्लानि प्राप्तः परितप्यते परिखिद्यते परलोकात्मभीतः, कथंभूतः सः? आत्मनः कर्मानुपेक्षी यदा रोगादिग्रस्तो भवति तदा स्वयं जानाति मम कर्मणां |विपाको जाप्तः. मया पुरा यान्यशुभानि कर्माणि कृतानि तमादहं परलोकोऽपि दु:ग्वी भविष्यामि, इति स्वकृतक
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