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भाषांतर अध्ययन५
॥३६॥
| मपि भविष्यामि. स बाल इत्युक्त्वा कामभोगानुरागेण काम भोगस्नेहेन क्लेश में प्रतिपदाते, क्लेशमिह परत्र च पुत्सराध्य- बाधात्युक्तं दुःख भजत इत्यर्थः ॥ ७ ॥ यन सूत्रम्
अर्थः-तदनंतर ते कामभोगना सुखमां लोलुप बनेलो पुरुष 'हुजनोनी साथे थइश' अर्थात् आ जनो कामभोग सुखना ॥३६॥ भाक्ता मारा जेवाछे तेमनी साये हुँ पण थइश' एम बाल-अज्ञ बनी प्रगल्भ थवा जाय धृष्टता धारण करे ले. ए बाल-मूख .
JEI एम बोलीने कामभोगना अनुरागवडे कामभोगमा अत्यंत स्नेहने लीधे क्लेश पामे छे. अर्थात आलोकमा तथा परलोकमां सथा
| परत्र पण वेदनायुक्त दुःख भोगवे छे. ॥ ७ ॥ JEतेओ से' दंड समारभइ । तसेसु थावरेसु ॥ अट्टाए वै अणट्ठाए भूयॉम विहिंसई ॥ ८॥
मलार्थ:-[ तो ते कामभोगना अनुरागथी (से)-ते जीव ( तसेसु)-त्रसप्राणीओने विषे ('भने [ थावरेसु स्थावरने विषे (अट्ठाए)-प्रयोजनविना [दंड] मन, वचन अने कायदंडने (समारभइ आरंमे छे, अने (भूअग्गाम) पाणी भोना समूहनी (विहिसइ)- | | हिंसा करे छेद
व्या-ततः कामभोगानुरागात्स धाष्टर्यवान् त्रसेषु च पुनः स्थावरेषु, दंड समारभते. मनोदंडवाकायैः पीडां समारभते, अर्थेन द्रव्योत्पादननिमितं अनर्थन निःप्रयोजनेन वा भूतग्रामं भूतानां पृथिव्यप्तेजोवायुवनसत्येकेंद्रियबींद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रियपंचेंद्रियादिजीवानां वर्ग विशेषेण हिनम्ति.
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