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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥ ३५९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे' गिद्धे कामभोगेसु । एंगे कूडाय गच्छई ॥ नें में दिट्ठे" परे लोएं । चक्खुदिष्ठों इमो रई ॥ ५ ॥ मूलार्थः – (जे =जे (एगे)=कोइ ( कामभोसु कामने विषे ( गिद्धे ) -लपट थयेलो होय ते ( कूडाय) - कूट- नरके ( गच्छइ )=जाय छे (मे)=अमे (परलोष = परलोक (न दिट्ठे) = जोथो नथी, (इमा रह) = कामभोग सेववाधी उत्पन्न थती रति तो (चक्खुदिठ्ठा) = चक्षुधी जोयेली छे. व्या० – कामभोगेषु य एकः कश्चित्कूरकर्मा पुरुषः कूटाय नरकस्थानाय नरकस्थानं गच्छति, नरकं व्रजतीत्यर्थः, कूटं प्राणिनां पीडाकरं स्थानं, द्वितीयास्थाने चतुर्थी प्राकृतत्वात्. अथवा य एकः कश्चित्कामभोगेषु गृद्धः स कूटाय गच्छति, मृषाभाषादि कूटं, तस्मै प्रवर्तते, तं प्रति कश्चिद्वक्ति-भो त्वं धर्म कुरु ? तदा स वक्ति यथा परलोको न दृष्टः, इमेयं रतिः कामभोगसुखं रतिः चक्षुर्दष्टा प्रलक्षं दृश्यमाना वर्तते ॥ ५ ॥ " अर्थ :- कामभोगमां जे रच्यापच्या रहे छे ते क्रूरकर्म करनार पुरुष नरके जाय छे. क्रूर एटले प्राणीओने पीडाकारकस्थान, अहीं 'कुटाय ए द्वितीयाविभक्तिना अर्थमां चतुर्थ विभक्ति छे, कारण के प्राकृतमां एम थइ शके छे. कूट पदनो बीजो अर्थ दर्शावे छे, अथवा जे कामभोगमां गृद्ध=सतृष्ण रहे छे ते कूट मृषाभाषण वगेरेमां प्रवर्ते छे. तेने कोइ पूछे के- 'तमे कंइ धर्म करो' त्यारे ते उत्तर आपे छे के–'मने परलोक देखातो नथी. मने तो आ चक्षुवी रति एटले काम भोगथी थता सुखमां प्रीति प्रत्यक्ष अनुभवाय छे. ५ हत्थागया इमे कामी । कालिओ जे अणागयां ॥ को जाणई परे लोएँ । अस्थि व नैत्थि वा पुणो ॥ For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्ययन५ ॥३५९॥
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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