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प्रमाणे अधोगति आदिकना हेतु छे तो पछी तेनी प्रार्थनाथी केम दुर्गति न थाय?. ५४ उत्तराध्यआ प्रमाणे वचन युक्ति श्रवण करी इन्द्र ज्यारे नमिराजर्षिने क्षोभ न पमाडी शक्यो त्यारे तेणे शुं कर्यु? ते कहे छे.
भाषांतर यन सत्रम्
एक अध्ययन अवैउज्झिऊण माहेण-रूवं विउविऊण इंदैत्तं ॥ वंदेइ अभित्थुणंतो। इमाहिं महुराहि बग्गृहि ॥५५॥ ॥५३८॥
॥५३८॥ मूल-माहणरूब'] ब्राह्मणना रूपनी [अवउज्झिऊण] त्याग करीने [इंदत्त] इंद्रनु रूप [विउरूविऊण] उत्तर वैक्रियपणे विकुनि (इमाहिं) भा (महुराहि) मधुर (बग्गूहि) वाणीवडे (अभित्थुणंतो) स्तुति करता इंद्र (ई) ते राजपिने वंदना करी. ॥५५॥
व्या०-इंद्रो नमिराषिप्रति वंदते, किं कुर्वन् ? इमाभिः प्रत्यक्षं वक्ष्यमाणाभिर्मधुराभिर्वाग्भिः स्तुवन् , किं JE कृत्वा ? ब्राह्मणरूपमपोह्य त्यक्त्वा, इंद्रत्वं विकुळ विधाय. ॥२५॥
अर्थ--तदनंतर इंद्रे ब्राह्मणरूपने अने पोताना इन्द्रत्वने विकुयु पुनः प्रकृति स्थित करी, अर्थात् पाछा इन्द्र थइने आ (हवे पछी कहेवाशे ते) मधुर वाणी वडे स्तुति करता नमिरार्षिने बंदन कयु. ५५ इन्द्रे केवा प्रकारे स्तुति करी? ते कहे छे. अहो ते निर्जिओ कोहो । अहोते माणो पराजिओ ।। अहोते" निरकियो मौ। अंहोते"लोहोवसीओ॥५६॥ मल-(महो) अहो ! (ते) तमे (कोहो) कोधने (निजिओ) जीत्यो छे, (अह.) अहो! (ते) तमे (माणो) माननो (पराजिमओ) पराज्य कयों छे, (अहो) अहो! (ते) तमे (माया) मायाने (निरकिमा) निराकृता दूर करी हे (तथा) अहो! (ते) तमे [लहो] लोभने (वसीकओ) वश कर्यो के. ॥५६॥
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