________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तराध्ययन सूत्रम्
भाषांतर अध्यगन९
॥५३७॥
॥५३॥
त्याज्य छे, एवाभोए तो केवळ संयमन गृहण करवा योग्य छे. ५३
अहे वयइ कोहेण । माणेणं अहमागई ॥ माया गइ पडिग्घाओ। लोभाओ दुहओ भयं ५४। मूल-प्राणी (कोहेण) क्रोधवडे (अहे वयइ) नरकादिगतिमां जाय छे. (माणेण) मानवडे (अहमा गइ) अधमगतिमा (माया) माया वडे (गइ पडिग्घाओ) सारी गतिनो प्रतिघात-विनाश थाय छे, तथा [लोहारो] लोभ थकी [दुहओं] बन्ने प्रकारनो [भय] भय प्राप्त थाय छे. ॥५४॥
व्या०-जीवः क्रोधेनाधो प्रजति, नरके याति, मानेनाधमा गतिर्भवति, गर्दभोप्ट्रमहिषशकरादिगतिः स्यात्. मायया सुगतेः प्रतिधातः, माया सुगतरर्गला भवति, लोभाद द्विधापि भयं स्यात्, एहिकं पारलौकिकं च भयं दुःखं स्यात् कामप्रार्थने ह्यवश्य भाविनः क्रोधादयस्ते च क्रोधादय ईदृशाः, ततः कथं तत्प्रार्थनातो दुर्गतिन स्यात् ? ॥५४॥ | एवं वचनयुक्तिं श्रुत्वेंद्रो नमिराजर्षिपति क्षोभयितुमशक्तः किमकरोदित्याह
____ अर्थ-जीव क्रोधे करी अधोगति पामे छे अर्थात् नरके जाय छे; माने करी अधम गतिने पामे छे, अर्थात् गधेडा, उंट, पाडा, मूकर; इत्यादि योनिने पामे छे; मायावडे सारी गतिनो प्रतिघात थाय छे अर्थात् कपट दगा वगेरे सद्गति मळयाना आडा आगकीया तुल्य बने छ; अने लोभथी तो बेय प्रकारनां भय उत्पन्न थाय छे; अर्थात् आ लोकमां तथा परलोकमां दुःख थाय छे. हवे जे पुरुष कामनी वांछना राखनारने ए कामनो प्रतिघात थतां क्रोधादिक तो अवश्य थवाना, अने ते क्रोधादिक तो उपर कडा
For Private and Personal Use Only