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भाषांतर अध्ययन४
॥३०४॥
___आ विषयमा वेश्याना घरमा रहेता पुरोहितपुत्रन दृष्टांत-कोइ नगरमा ते नगरना राजा इन्द्रमहोत्सव निमित्ते राणी भो | JE उत्सराध्य
सहित नगरनी बहार नीकळ्या त्यारे नगरमां निर्घोष=साद पडाव्यो के-'सर्वे पुरुषो नगरनी बहार आवो' जे गाममां यन सूत्रम्
| रही जशे तेने महोटी दंड मळशे ? आ समये राजानो वहालो पुरोहितनो पुत्र वेश्याना घरमां पेठेलो तेणे साद सांभ॥३०४॥ | ळतां छतां पण बहार नीकळ्यो नहिं. राजपुरुषोए जइने पकड्यो. तो पण 'राजानो पिय छु' एम मनमा गुमान राखीने
तेओने दाद न दीधी राजपुरुपोए पकडीने राजा पासे लावी उभो कर्यो. राजाए पोतानी आज्ञाना भंगनो अपराधी ठेरावी मूलीए चडावी देवानो दंड फरमाव्यो. ए वेश्यासक्त पुत्रना पिता पुरोहिते राजा आगळ आचीने मारुं सर्वस्व आपी दउं अने
मारा पुत्रने छोडो' आम विज्ञापन कर्यु तथापि राजाए न मूक्यो अने शूलीये चढावी दीयो. दीपमणष्ट हाथमां दीवो MIलइ अंधारामां चाल्पा जनारने जेम ए दोबो नष्टथायओलवाइजाय-यारे अनंत मोह थाय तेम भावरूपो उद्योतथी रहित र
थयेलो पुरुष नैयायिक सम्यकदर्शनादि तब जोहने पण न जोया जेवू करे छे, तद्वत् ए ज्ञानप्रकाश विहोणो, अनंत= अविनाशी-मोह, एटले जेनां दर्शनावरणमोहनीयात्मक अनंत छे एवो ए अज्ञानी पुरुष के जेने सम्यक्खदीप ठरी जतां मिथ्याखोदयरूप अनंतमोह ययो के तेने नैयायिक सम्यग्दर्शन तख मळ्युं न मळ्या जेवू थाय छे. माप्त थयेलुं सम्यक्त्व पण प्राप्त न थया जेवं होय छे, कारणके लब्ध सम्यक्खनी हानी थतां ते लब्ध न थया तुल्य छे ए प्रमादीपुरुष द्रव्यवडे रक्षण नथी पामतो एटलुज नहिं किंतु ए प्रमादी नरकादि भयना निवारणतुं हेतुभूत सम्यग्ज्ञानादि रबत्रयने पण हणे छे. अहींखाणमां दीवो लड पेठेला धातवादी पुरुषने जेम दीवो ठरी जतां दीठेलो मार्ग पण न दीठा जेवो थाय.
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