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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्यपन सूत्रम् ॥ ४७० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिस्तत्र समायातः स वृषः क इति गोपालान् भूपतिः पप्रच्छ, गोपालर्जराजीर्णः पतितदशनो हीनयलो वत्सैर्घहितदेहः कृशांगः स दर्शितः तं तथाविधं दृष्ट्वा भवदर्शा विषमां विचारयन् करकंडुराजैवं वितयति, यथायं वृषभः पूर्वावस्थां मनोहरां परित्यज्येमां वृद्धावस्थां प्राप्तः, तथा सर्वोऽपि संसारी संसारे नवां नवामवस्थां प्राप्नोति, मोक्षे चैवैकावस्था, मोक्षस्तु जिनधर्मादेव प्राप्यते, अतो जिनधर्ममेव सम्यगाराधयामीति परं वैराग्यं प्राप्तः करकंडुराजा स्वयमेव प्राग्भवसंस्कारोदयात्प्रतिबुद्धः सद्यः शासनदेव्यर्पितलिंगस्तृणवद्राज्यं परित्यज्य प्रव्रज्यामाददे. उक्तं च-श्वेतं सुजातं सुविभक्तशृंगं । गोष्टांगणे वीक्ष्य वृषं जरार्त ॥ ऋद्धि वृद्धिं च समीक्ष्य घोषात्कलिङ्गराजर्षिरवाप धर्मम् ॥ १ ॥ इति करकंडुपचरित्रं समाप्तम. वे साम्राज्यना कार्यमा व्यग्र रहेता राजा केलांक वर्ष गोकुल निरीक्षण करवा न गया. एक वखते तेने पेलो बाछडो याद आवतां तेने जोवाने चाहीने राजा गोकुलस्थाने आव्या अने पूछयुं के 'ते घोळो बाछडो क्या?" गोवाळीए एक जरा जीर्ण, पडी गयेल के दांत जेना अने हीनवळ होवाथी बाछडाओ जेने ढींके मारता हता एवा घरडा वळदने देखाडी कथं के 'ते आ बाछडो' राजा ज्यारे आवा दुबळा अंगवाळो नृप जोयो त्यारे तेना मनमां आव्युं के - 'अहो आ संसारदशा केवी विषम छे, जेम आ वृषभ पूर्वनी मनोहर अवस्था त्यजीने आवी वृद्धावस्था पाम्यो तेम सर्व संसारी जनो पण आ संसारमां नवी नवी अवस्थाने पामे छे. मात्र मोक्षमांज एक अवस्था होय छे, मोक्ष तो जिनधर्मथी प्राप्त कराय के माटे जिनधर्मनुं सम्यक् आराधन करूँ' आवो विचार आवतां करकंडू राजा पोताना पूर्वभव संस्कारना उदयथी वैराग्य प्राप्ति पूर्वक प्रतिबुद्ध थया के तरतन शालनदेवीए लिंग=साधुचिन्ह= For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्ययन ९ ||४७० ॥
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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