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भाषांतर अध्ययन४
॥३०२॥
साधु बोल्यो-जेम तु पोते स्वजन माटे क्लेश वेठे छे आ एक वचनथीज ते प्रबुद्ध बनी गयो अने बोल्यो के-भगवन् ! उत्सराध्य
| तमे क्यां स्थिति करो छो ? साधुए कह्यु के-'पेला उद्यानमां' त्यारे ते वणिक साधुनी साथे उद्यानमा गयो तेमना मुखथी | यन सूत्रम्
धर्मचर्चा सांभळी बाल्यो के-'भगवन ! 'हु प्रवज्या ग्रहण करीश' आमने आम तो ठीक नहिं माटे स्वजननी रजा ॥३०॥ लइ आq ' आमकहीने पोताने घरे गयो. पोतानी स्त्री तथा बांधवोने भेगा करी का के-'अहीं दुकानमा वेपार करवाथी
लाभ बहुज तुच्छ मळे छे माटे हुँ देशांतर जना धारं छु, तेमां वे सथवारा छे, एक साथीतो मूल द्रव्य आपी धारेले JE देशे पहोंचाडे छे अने लाभमा भाग मागतो नथी, अने बीजो साथी छे ते मूडी आपी साथे आवे छे ते लाभ लइ लेवा मागे छे
हवे तमे कहो के केनो साथ करवो ? केनी साथे जq योग्य छे ? संबंधी जनोए कडु के-'पहेला साथीनी साथेज जर्बु | वणिक स्वजनने साथे लइ वनमा गयो, ज्यां पेला मुनि उद्यानमा ठेा छे त्यां जइ स्वजनने कईं आ मुनि परलोकनो
साथी छे पोतानु मूल द्रव्य आपीने वेपार करावी मोक्षपुर लइ जशे आम दृष्टांत दर्शन पूर्वक स्वजनोनी अनुज्ञालइ ते वणिके Jए मुनि समीपेदीक्षागृहण करी.
वित्तेण ताण न लभे पमैत्ते। इमंमिलोए अहेवा परत्थ ॥ दीवप्पणठेव अणंतमोहे। नेयाउयं दहममेव ॥५॥ मूलार्थ:-(पमत्ते)-प्रमादी मनुष्य (इममि लोप)-आ लोकने विषे अदुवा) अथवा (परत्था)-परलोकने विषे (वित्तण धनवडे (ताण)= रक्षणने (न लेमे)-पामतो नथी, (दीवप्पणठेव)-नाश पाम्यो छे दीपक जेनो एवा (अण तमोहे) अन'त मोहवाळा पुरुषे (ने आउ) न्यायमार्ग (दछु) जोइने [अदठुमेन)-नथी जोयो एम जाणवु'
الفناناما للقاع فلاسلام اللي فاتفقنا فلتان في
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