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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्सराध्य 'न्येषां मृषावादादीनां तु ज्ञानं तेषु कुत एव संभाव्यते? कथंभूतास्ते? मंदा मिथ्यात्वरोगग्रस्ताः, पुनः कथंभूतास्ते? याला | ETभाषांतर पन सूत्रम् विवेकहीनाः विवेकहीनत्वं हि तेषां पापशास्त्रेषु धर्मशास्त्रबुद्धित्वात्. तद्यथा-ब्रह्मणे ब्राह्मणमालभेत, इंद्राय क्षत्रमालभेत, IPE अध्ययन८ ममदभ्यो वैश्य, नमसे शुद्रं, तथा-यस्य बुद्धिर्न लिप्येत । हत्वा सर्वमिदं जगत् ॥ आकाशमिव पंकेन । नासौ पापेन ॥४४२॥ ॥४४२॥ PE लिप्यते ॥१॥ धर्मो हि बालैग्ज्ञेयः ॥ ७॥ अर्थ-केटलाएक मिथ्यात्वी कुतीर्थ्य पापिका-पाप हेतुभूत दृष्टिथी पाणिवध अधर्म न जाणता नरके जाय छे. ते केवा? मृज अविवेकी तथा मंद जड जेवा जेम कोइ रोग ग्रस्तदृष्टिवाळा सारा मार्गने न जाणता कोइ दुःखव्याप्त मार्गमां जाय छे, तेम | अमे श्रमण छइए एम वोलता श्रमण धर्म रहित छतां पोतामां श्रमणपणानुं अभिमान लेनारा. माण वध न जाणे तेने मृषावादादिकनुं DEभान क्याथी संभवे. तेश्रो मंद-मिथ्यात्व रोगग्रस्त होवाथी बाल-विवेक हीन होय छे केमके तेओने अधर्म शास्त्रोमां धर्मशास्त्र बुद्धि होय छे. ब्रह्मने ब्राह्मण, इंद्रने क्षत्र, मरुद्ने वैश्य तथा तमसने शूद्र आलभन करवा. वळी 'आ सर्व जगत्ने हणीने पण जेनी बुद्धि अलिप्त रहे ते आकाश कादवथी न लीपाय तेम पापथी लीपातो नथी. इत्यादि० धर्म पदार्थ बाल=अज्ञथी जाणी शकातो नथी. ७ नेह पाणवहर्मणुजाणे। मुञ्चिज कयाइ सवदुखाणाएवमायरिएहिं अक्खायं। जेहिं ईमो साहुधम्मो पन्नत्तो। मूलार्थ-(पाणवह) प्राणवधने (अणुजाणे) अनुमोदना करतो [कयाइ] कदापि (सयदुक्याण) सर्व दुःखो थकी (नहु) नथीज (मुश्चिज) मकातो, [एव] प्रमाणे (आरिएहि) तीर्थकरादिके (अक्खाय) कयुं छे के (जेहिं) जे ओर्योष (इमो) आ [साहुधम्मो] साधुधर्म (पणत्तो) कह्यो छे.८ انسان عندما تقع نمت نه شکلاتی مفادات والمكال LalitDJBULURUJuhue For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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