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शेषेण पर्यस्तः पराङ्मुखो हितनिःश्रेयसबुद्धिविपर्यस्तः, स्वर्गापवर्गसुखाद्भष्ट इत्यर्थः ॥५॥ उत्तराध्य-10
भाषांतर पन सूत्रम्
अध्ययन८ अर्थ-एवो ए बाल-मूर्ख, अज्ञानी कम वडे करी बंधाय छे अने बद्ध थवाथी संसारमाथी नीकली शकतो नथी किंतु संसार॥४४॥२५ मांज सीदाय छे, केनी पेठे? जेम खेल लाळ लीट वगेरेमा मक्षिका चोटी जतां छुटी शकती नथी अने अकळाय छे. तेम ए मूढ ३६ ॥४४०॥
Jt मोहथी व्याकुल मन वाळो, मंद-धर्मक्रिया करवामां आळसु, 'विषयामिषदोपविषण्ण' लोलुपताना हेतुभूत विषयरूप आमिष-मांस |JE
विपयामिष आवां विषयामिष जीवने दुपित करे छे तेथी दोष कहेवाय, तेचा विषयामिष दोषमा विषण्ण-निमग्न-चोटी रहे तो, वळी हितनिःश्रेयस बुद्धि पर्यास्त=हित=आ लोकन् आत्म सुख तथा निःश्रेयस=मोक्ष; आ बन्नेना विषयमा जे चुदि-ज्ञान, तेथी विशेषे करीने पर्यस्त=विमुख; अर्थात् आ लोक तथा परलोकना पोताना हितना भान वगरनो; स्वर्ग तथा अपवर्ग मोक्ष; बेयथी भ्रष्ट रही | संसारथी छूटी शकतो नथी. ५
परिच्चया इमे कामा।नोसुजहा अधीरपुरिसेहि।अँह संति सुबया साहे। जे" तरंति अंतरं वणियावयव॥६ मलार्थ-[इमे] आ (कामा) शब्दादिक कामो (दुपरिचया) कष्टथी नोवारी शकाय तेवा छे तेथी ते (अधीरपरिसे) अधीर-सत्य-SE रहित पुरुषोए (नो सुजहा) सुखे तजी शकाप तेवा नथी. (अह) तथा (सुव्वया) निष्कलंक (साहु साधुओ (संति) छे, (जे) जेओ [अंतरं] तरी न शकाय तेवा भवने (तरंति) तरी जाय रे. ६
व्या०-इमे प्रसिद्धाः कामा अधीरपुरुषैर्न सुजहाः, न सुखेन हातुं योग्या इत्यर्थः, मिष्टान्नादिभोजनवत् . कीदृशा
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