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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटोक ॥ मूलम् ॥--सागरा अउणवीसं तु । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ आणयंमि जहन्नेण । अठ्ठारस ॥१२७६॥ है सागरोवमा ॥३२॥ व्याख्या--आनते देवलोके एकोनविंशतिसागरोपमाण्युत्कृष्टेनायुःस्थितिर्भवेत. दतथा जघन्येनाष्टादशसागरोपमाण्यायुःस्थितिर्भवेत्. ॥ ३२॥ ॥ मूलम् ॥--वीसं तु सागराइं । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ पाणयंमि जहन्नेणं । सागरा अउणवोसई ॥ ३३ ॥ व्याख्या--प्राणतदेवलोके उत्कृष्टेन विंशतिसागरोपमाण्यायुःस्थितिर्भवेत. तथा जघन्येनैकोनविंशतिः सागरोपमाण्यायुःस्थितिभवेत् ॥ ३३ ॥ ॥ मूलम् ॥--सागरा इक्कवीसं तु । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ आरणंमि जहन्नेणं । वीसाओ सागरोवमा ॥ ३४ ॥ व्याख्या--आरणे देवलोके एकविंशतिसागरोपमाण्युत्कृष्टायुःस्थितिः, जघहै न्येन तु विंशतिसागरोपमाण्यायुःस्थितिर्भवेत्. ॥ ३४ ॥ ॥ मूलम् ॥-बावीससागराइं । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ अच्चुयंमि जहन्नेणं । सागरा इक्वोसई ॥ ३५॥ व्याख्या-अच्युते देवलोके द्वाविंशतिसागरोपमाण्युत्कृष्टायुःस्थितिर्भवेत्. जघन्यत RACRORSCHOOT SPEECHNOLORCRACHARAC% द॥१२७६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020852
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1929
Total Pages1306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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