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सटीक
११२०३॥
KK+KAKK+CE
संठाणओवि य ॥ ३८ ॥ व्याख्या-यः पुद्गलः स्पर्शतो लघुर्भवति, स पुद्गलो वर्णतो गंधतो 5. रसतः संस्थानतश्च भाज्यः ॥ ३८॥
॥ मूलम् ।।-फासओ सीयए जे उ। भइए से उ वन्नओ ॥ गंधओ रसओ चेव । भइए ए संठाणओवि य ॥३९॥ व्याख्या-यः पुद्गलः स्पर्शतः शीतलो भवति, स पुद्गलो वर्णतो गंधतो है रसतः संस्थानतश्चापि भाज्यः ॥ ३९ ॥
॥ मूलम् ॥-फासओ उण्हओ जे उ । भइए से उ वन्नओ॥ गंधओ रसओ चेव । भइए संठाणओवि य॥४०॥व्याख्या-यः पुद्गलः स्पर्शत उष्णो भवति, त पुद्गलो वर्णतो गंधतो रसतः
संस्थानतश्चापि भाज्यः. ॥ ४०॥ ॐ ॥ मूलम् ॥–फासओ णिद्धओ जे उ । भइए से उ वन्नओ॥ गंधओ रसओ चेव । भइए
संठाणओवि य॥४१॥ व्याख्या--यः पुद्गलः स्पर्शतः स्निग्धो भवति, घृतादितुल्यो भवति, स | पुद्गलो वर्णतो गंधतो रसतः संस्थानतश्च भाज्यः ॥ ४१ ॥
*॥१२०३॥
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