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उत्तरा
॥१२०१॥
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संठाणओवि य ॥ ३२ ॥ व्याख्या-यः पुद्गलो रसतः कषायो भवति, स पुद्गलो वर्णतो गंधतः
| सटीक स्पर्शतश्च भाज्यः, संस्थानतश्चापि भाज्यः. ॥ ३२॥
॥ मूलम् ॥-रसओ अंबिले जे उ । भइए से उ वन्नओ ॥ गंधओ फासओ चेव । भइए ए संठाणओवि य॥३३॥ व्याख्या-यः पुद्गलो रसत आम्लो भवति, स पुद्गलो वर्णतो गंधतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः ॥ ३३ ।।
॥ मूलम् ।-रसओ महरए जे उ । भइए से उ वन्नओ ॥ गंधओ फासओ चेव । भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ॥ व्याख्या-यः पुद्गलो रसतो मधुरः शर्करातुल्यो भवति, स पुद्गलो
वर्णतो गंधतः स्पर्शतश्च भाज्यः ॥ ३४ ॥ एवं रसपंचकसंयोगे शतं (१००) भंगाः, इति रसभेदाका नुक्त्वा स्पर्शभेदानाह8 ॥ मूलम् ॥-फासओ कक्खडे जे उ । भइए से उ वन्नओ ॥ गंधओ रसओ चेव । भइए 3
। मइए १२०१॥ संठाणओवि य ॥ ३५॥ व्याख्या-यः पुद्गलः स्पर्शतः कर्कशो भवति, स च पुद्गलो वर्णतो
KAKKAKKARANRAKAR
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