________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 98 उपमितिभवप्रयचा कथा / सारन्तो रोरभावं हि त्वत्कारात्ते न रखते // 54 // श्रादद्यात् कश्चिदेकोऽपि यदि तत्सगुणो नरः / तेन स्यात्तारितो मन्ये यत एतदुदाहृतम् // 55 // किञ्चिज्ञानमयं पात्रं किञ्चित्याचं तपोमयम् / आगमिष्यति तत्पात्रं यत्पात्रं तारयिष्यति // 56 // ततोऽसौ वर्द्धितानन्दस्तस्या वचनकौशलैः / विधत्ते तत्तथैवेति तत्रेदमभिधीयते // 5 // प्रयुक्तं तादृशेनापि ये ग्रहीष्यन्ति मानवाः / ते भविष्यन्ति नौरोगा यत्रयं तत्र कारणम् // 5 // अन्यञ्च / यावदर्थं निसृष्टत्वाद् ग्रहणे तदनुग्रहात् / अनुकम्पापरस्तत्र सर्वस्तू लातुमहर्ति // 56 // एष तावत्समासेन दृष्टान्तः प्रतिपादितः / अधुनोपनयं यूयं कथ्यमानं निबोधत // 6 // अदृष्टमूलपर्यन्तं यदत्र कथितं पुरम् / मोऽयं संसारविस्तारोऽदृष्टपारः प्रतीयताम् // 61 // महामोहहतोऽनन्तदुःखाघ्रातो विपुण्यकः / पूर्व मदीयजीवोऽयं स रोर इति ग्राह्यताम् // 62 // भिक्षाधारतया ख्यातं यत्तस्य घटकर्परम् / तदायुर्गुणदोषाणामाश्रयस्तद्विवर्त्तते // 63 // डिम्भाः कुतीर्थका ग्राह्या वेदना क्लिष्टचित्तता / रोगा रागादयो ज्ञेया अजीर्ण कर्मसञ्चयः // 6 // For Private And Personal Use Only