________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। सद्बुद्धिस्तद्दयायोगात्तिष्ठते राजमन्दिरे / ततः प्रभृति यत्तस्य संपन्नं तन्निबोधत // 22 // ----- अपथ्याभावतो नास्ति पीडा देहे परिस्फुटा / कचित्समाल्पकाला च यदि स्यात्पूर्वदोषजा // 23 // ततः स्वयं गताकासो लोकव्यापारशून्यधीः / विधत्ते विमलालोकं नेत्रयोरञ्जनं सदा // 24 // तत्त्वप्रौतिकरं तोयं पिबत्यश्रान्तमानमः / महाकल्याणकं भुत तत्सदन्नमनारतम् // 25 // ततो बलं तिः स्वास्थ्यं कान्तिरोजः प्रसन्नता / बुद्धिपाटवमचाणां वर्द्धते ऽस्य प्रतिक्षणम् // 26 // नाद्यापि सम्यगारोग्यं बहुत्वाद्रोगमन्ततः / जायते केवलं देहे विशेषो दृश्यते महान् // 27 // यः प्रेतभूतः प्रागासौगाढं बीभत्मदर्शनः / म तावदेष संपन्नो मानुषाकारधारकः // 28 // ये रोरभावे भावाः प्रागभ्यस्तास्ते न सन्ततम् / तुच्छता क्लौबता लौल्यं शोकमोहभ्रमादयः // 26 // त्रयोपभोगात्ते सर्वे नष्टप्रायतया तदा / न बाधका मनाग् जातास्तेनासौ स्फीतमानमः // 3 // अन्यदात्यन्तहष्टात्मा सद्बुद्धिं परिपृच्छति / भने त्रयमिदं लब्धं मयैतत् केन कर्मणा // 31 // तयोक्तं तात लभ्यन्ते सर्वेऽर्था दत्तपूर्वकाः / इति वार्ताजने तेन दत्तमेतत् कचित्त्वया // 32 // 6 For Private And Personal Use Only