________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / मुखेन्दोरंशभिर्याप्तं या बिभर्नि विकखरम् / करे पद्ममचिन्येन धान्ना तां नौमि देवताम् // 8 // परोपदेशप्रवणो मादृशोऽपि प्रजायते / यत्प्रभावान्नमस्तेभ्यः सद्गुरुभ्यो विशेषतः // 6 // इत्थं कृतनमस्कारः शान्त विघ्नविनायकः / विवक्षितार्थप्रस्ताव रचयिष्ये निराकुलः // 10 // दहातिदुर्लभं प्राप्य मानुष्यं भव्यजन्तुना / ततः कुलादिसामग्रौमासाद्य शुभकर्मणा // 11 // हेयं हानोचितं सर्व कर्त्तव्यं करणोचितम् / शाध्यं लायोचितं वस्तु श्रोतव्यं श्रवणोचितम् // 12 // यत् किञ्चिच्चित्तमालिन्यकारणं मोक्षवारणम् / मनोवाक्कायकर्मेह हेयं तत्वहितैषिणा // 13 // हारनौहारगोचौरकुन्देन्दुविशदं मनः / कृतं यत् कुरुते कर्म कर्त्तव्यं तन्मनीषिणा // 14 // लाघनीयः पुनर्नित्यं विशद्धेनान्तरात्मना / त्रिलोकनाथस्तद्धी ये च तत्र व्यवस्थिताः // 15 // श्रोतव्यं भावतः मारं श्रद्धासशुद्धबुद्धिना / निःशेषदोषमोषाय वचः सर्वज्ञभाषितम् // 16 // तदत्र प्रस्तुतं तावत्तदेव जगते हितम् / श्रोतव्यमिति मंचिन्त्य वचः सर्वज्ञभाषितम् // 17 // ततस्तदनुसारेण महामोहादिसूदनौ / निर्दिष्टभवविस्तारा कथेयमभिधास्यते // 18 // For Private And Personal Use Only