________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। तथाहि // पञ्चाश्रवमहादोषा षौकाणां च पञ्चकम् / महामोहयुतानां च कषायाणां चतुष्टयम् // 18 // मिथ्यात्वरागद्वेषादिरूपं यच्चान्तरं बलम् / तदोषावेदकं सर्व वचः सर्वज्ञभाषितम् // 20 // तथा // ज्ञानदर्शनचारित्रसंतोषप्रशमात्मकम् / तपःसंयमसत्यादिभटकोटिसमाकुलम् // 21 // यच्चान्तरं बलं तस्य गुणसंभारगौरवम् / वर्णयत्येव जैनेन्द्रं वचनं हि पदे पदे // 22 // तथा॥ एकेन्द्रियादिभेदेन दुःखरूपमनन्तकम् / भवप्रपञ्चं जैनन्द्रं वचनं कथयत्यलम् // 23 // अतस्तां भित्तिमाश्रित्य मादृशेनापि जल्पितम् / वाक्यं जैनेन्द्रसिद्धान्तनिष्यन्द इति भाव्यताम् // 24 // अर्थ कामं च धर्म च तथा संकीर्णरूपताम् / आश्रित्य वर्त्तते लोके कथा तावच्चतुर्विधा // 25 // मामादिधातवादादिकृष्यादिप्रतिपादिका / अर्थोपादानपरमा कथार्थस्य प्रकीर्तिता // 26 // मा क्लिष्टचित्तहेतुत्वात्यापमंबन्धकारिका / * तेन दुर्गतिवर्त्तन्याः प्रापणे प्रवणा मता // 27 // For Private And Personal Use Only