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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ची-|| खरानुकारिकरिनिकरां, जलधिकल्लोल लोलरंगतुरंगसंयतां चलत्प्रासादप्रतिम पृथुलरथ संमतामा. ४ र्ददुःसंचरां, निजवलसमुह लत्सुजटकोटिकोलाहल वाचालित सकल दिग्वलयां, निशितेतरवारिपरिपट्टिशप्रमुख प्रहरण प्रस्थापितपरप्राणामरीणां सेनामपि जुजवलेनारीोऽखिन्नः सन् दंति, सोऽपि पिंस्थान पंचरिपूनिंद्रियलक्षणान्निहंतुं क्लीवः कातर इव चेष्टते ॥ ६८ ॥ - थें प्रियनिग्रहोपायमाह -- ९२९ ॥ मूलम् ॥ सवत्थ अहयदप्पा इंदियसप्पा न तं परिजवंति ॥ हिययम्मि जस्स जग्ग | इय सिडिमहामंतो || ६ || व्याख्या - सुगमा, तामेवानुशिष्टिमाह ॥ मूलम् ॥ - परिमियमा जुत्रण - मसंवियं वादिबाहियं देहं ॥ परिविरसा वि सया । अणुरच्चसि तेसु किं जीव ॥ ७० ॥ व्याख्या - यदा कस्यचित्साधोर्मुक्तनोगस्य पूर्वकी मितस्मरणादिना, इतरस्य च कुतूहलीतया इंद्रियाण्युछृंखलीजवंति, तदा स एवमात्मानमनुशास्ति. गाथार्थः सुगम एव ॥ ७० ॥ विषयाणां वैरस्यमेव जावयति - ॥ मूलम् ॥ - धम्मघवहारिणं । अगजवलरक डुरककारिणं ॥ विसथाण खरीप For Private and Personal Use Only
SR No.020847
Book TitleUpdesh Chintamani Satik Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1922
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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