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तुलसी शब्द-कोश
पुकारत : वकृ.पु । चिल्लाता, चिल्लाते । 'गए पुकारत कछु अधमारे ।' मा०
५.१८.६ पुकारहीं : आ०प्रब० । चिल्लाते हैं। तेऽतिदीन पुकारहीं।' मा० ६.८५ छं० पुकारा : (१) पुकार । चीत्कार । 'परि मुह भर महि करत पुकारा।' मा०
२.१६३.४ (२) भूकृ०० । चिल्लाया । 'अर्धरात्रि पुर द्वार पुकारा।' मा०
पुकारि : पूकृ० । पुकार कर, चिल्लाकर, हाक देकर। 'कहउँ पुकारि खोरि मोहि
नाहीं ।' मा० १.२७४.३ पुकारिअत : वकृ०-कवा०-पुं० । पुकारे जाते, कहे जाते । ‘देवी देव पुकारिअत नीच ___ नारि नर नाम।' दो० ३६० पुकारी : पुकारि । 'यह सपना मैं कहउँ पुकारी।' मा० ५.११.७ पुकारे : भूक००ब० । (१) चिल्लाये । 'कछु पुनि जाइ पुकारे।' मा० ५.१८
(२) पुकारने से । 'मढ़े स्रवन नहिं सुनति पुकारे ।' गी० ५.१८.२ पुकारेसि : आ०-पुकारे+प्रए । वह चिल्लाया। परेउ भूमि जय राम पुकारेसि।'
मा० ६.६१.७ पुकारो : पुकारयो । 'किधौं बेदन मषा पुकारो। विन० ६४.२ पुकार्यो : भूक.पु०कए । घोषित किया। 'प्रभु सों प्रगटि पुकार्यो।' विन०
१४५.५ पछिहहिं : पूछिहहिं । 'पुछिहहिं दीन दुखित सब माता।' मा० २.१४६.१ पुजाइ : पूकृ० (सं० पूजयित्वा>प्रा० पुज्जाविअ>अ० पुज्जावि)। पूजा करवा __ कर । एहि भांति देव पुजा इ सीतहि सुभग सिंघासन दियो।' मा० १.३२३
छं० २ पुजाहबे : भकृ०० (सं० पूजयितव्य>प्रा० पुज्जाविअन्व) । पुजाने, पूजा कराने ;
दूसरों को देवादि पूजन हेतु प्रेरित करने या अपनी ही पूजा कराने । 'बहुत प्रीति
पुजाइबे पर पूजिबे पर थोरि ।' विन० १५८.२ पुजावन : भकृ० अव्यय । पूजा कराने । 'संभ सभोत पुजावन रावन सों नित आवै।'
कवि० ७.२ पुजावहि, ही : आ०प्रब० (सं० पूजयन्ति>प्रा० पुज्जावंति>अ० पुज्जावहिं)।
पूजा करवाते हैं । ‘गनपति मुदित विप्र पुजावहीं ।' मा० १.३२२ छ० १ पुट : सं०० (सं०)। (१) दोनी (आदि पात्र)। पिअत नयन पुट रूपु पियूषा।'
मा० २.१११.६ (२) दो जुड़े हुए पात्र या तत्सदृश आवरण । 'पुट सूखि गये मधुराधर वै ।' कवि० २.११ (३) जुड़े हुए हाथों आदि की मुद्रा । 'कर पुट
सिर राखे।' गी० १.६.२० पुटन्हि : पुट+संब० । पुटों (से) । 'श्रवन पुटन्हि मन पान करि ।' मा० ७.५२ ख
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