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तुलसी शब्द-कोश
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पुटपाक : सं०पु० (सं०) । रसायन (रसौषध) बनाने की विधि में दो पात्रों का
मुह एक साथ जोड़कर भीतर औषध बंद करके ऊपर मिट्टी से लेस कर आग में डालते हैं । इस विधि से बनाये पात्र को 'पुटपाक' कहते हैं; यह सम्पूर्ण पाकविधि भी 'पुटपाक' कही जाती है; और औषधि को भी 'पुटपाक' कहते हैं ।
कवि० ५.२५ पुटी : पुटी+ब० । पुड़ियाँ (पुड़ियों में) । 'भरि भरि परन पुटी रचि रूरी।' मा०
२.२५०.२ पुण्य : वि०+सं०० (सं०) । पवित्र । 'पुण्यं पापहरं ।' मा० ७.१३० श्लोक ४ पुतरि, री : सं०स्त्री० (सं० पुत्तली)। पुतली, आँखों की कनीनिका। मा०
२.५६.२ पुतरिका : पुतरी (सं० पुत्तलिका)। गुड़िया, कठपुतली । विन० १२४.४ पृतोह : सं०स्त्री० (सं० पुत्रवधू>प्रा० पुत्तवहू)। पतोहू । मा० २.१५.७ पुत्र : सं०० (सं.)। पुत =नरक से त्राण करने वाला= आत्मज । मा० १.१७७ पुत्रकाम : वि० (सं०) । पुत्र की कामना वाला =पुत्रेष्टि (यज्ञ) । 'पुत्रकाम सुभ
जग्य करावा ।' मा० १.१८६.५ पुत्रवधू : पुतोहू । मा० २.५९.१ पुत्रवती : वि.स्त्री० (सं.)। पुत्र वाली । मा० २.७५.१ पत्रि : पुत्री+संबोधन । हे पुत्रि । 'सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा ।' मा० ३.२६६ पुत्री : सं०स्त्री० (सं०) । आत्मजा । मा० २.८२.४ पुमि : अव्यय (सं० पुनर्>प्रा. पुणो>अ० पुणु) । फिर, दुबारा । मा० १.४.६ पुनी : (१) वि०० (सं० पुण्यिक>प्रा० पुण्णिअ)। पुण्यात्मा, धर्माचारी । 'सब
निर्दभ धर्मरत पुनी।' मा० ७.२१.७ (२) पुनि । फिर भी । 'राम को कहाइ
दासु दगाबाज पुनी सो।' कवि० ७.७२ पुनीत, ता : वि० (सं० ?)। (१) पवित्र, पापमुक्त । 'तिन्हहि मिलें तै होब
पुनीता।' मा० ४.२८.८ (२) पवित्र करने वाला । दे० पतित पुनीत । पुनीतता : पवित्रता । विन० २६२.१ ।। पुन्य : पुण्य । (१) धर्म, शुभकर्म (पाप का विलोम) । 'सुख दुख पाप पुन्य
दिनराती।' मा० १.६.५ (२) शुभ का फल । 'पुन्य बड़ तिन्ह कर सही ।' मा० १.६५ छं० (३) उत्तम प्रारब्ध कर्म (सौभाग्य)। 'कहि न सकउँ निज पुन्य प्रभाऊ ।' मा० १.२१७.१ (४) वि० । पवित्र, पावन । “पुन्य पुरुष कहुं
महि सुख छाई ।' मा० १.२६४.१ पुन्यकोस : पुण्य रूपी धन का भंडार । कवि० ७.१७२ पुन्यथल : पवित्र भू-भाग, पुण्य कर्मों का स्थल तीर्थ । मा० २.३१०.३ पुन्यपुज: पुण्यसमूह, पूण्यराशि । मा० २.१०१.८
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