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तुलसी शब्द-कोश
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पीपर : सं०० (सं० पिप्पल) । अश्वत्थ वृक्ष । मा० २.४५.३ पोबो : भकृ.पु०कए । पीना, पान करना । 'अजहं न तजत पयोधर पीबो।'
पीय : पिय । पति । 'सौंह सांची सिय-पीय की।' विन० २६३.२ पीयूषा : पियूषा । अमृत । मा० ६.२६.६ पीर : पीर । (१) व्य था। ‘ऐसिउ पीर बिहँसि तेहिं गोई ।' मा० २.२७.५
(२) दया, सहानुभूति । 'काहू तो न पीर रघुबीर दीन जन की।' विन० ७५.२ 'पीरमई : वि० (सं० पीडामय>प्रा० पीडम इअ) । पीडा से ओतप्रोत । 'सकल सरीर
पीरमई है।' हनु० ३८ पीरा : (१) सं० स्त्री० (सं० पीडा) । व्यथा। 'तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा।'
मा० १.१४५.४ (२) सहानुभूति-दे० पीर । (३) उत्पीडन । 'जे नर पर
पीरा-करहिं ते सहहिं महा भव भीरा ।' मा० ७.४१.३ 'पोरे : पीले । पीरे पट ओढ़े।' गी० १.४२.२ पील : सं०० (सं०+फा०) । हाथी । कवि० ७.१८ 'पीले : वि००ब० (सं० पीतल>प्रा० पीअल =पीअलय) ।.पीत वर्ण । 'नीले पीले
कमल ।' गी० २.३०.१ पीवत : पिअत । 'मज्जत पय पावन पीवत जल ।' विन० २४.५ पीवनि : सं०स्त्री० । पीने की क्रिया। ‘सुधा तजि पीवनि जहर की।' कवि०
७.१७० 'पीवर : वि०० (सं.)। स्थूल । 'तनु बिसाल पीवर अधिकाई ।' मा० १.१५६.७ पीवै : पिअहिं । पीते-ती हैं। 'चकोरी..'चंद की किरिन पीवै ।' कवि० १.१३ । पीसत : वकृ०पु० । पीसते (किटकिटाते)। 'पीसत दांत गये रिस रेते ।' विन०
२४१.२ 'पोसि : पूकृ० । पीसकर (किटकिटा कर) । 'ता पर दांत पीसि कर मीजत।' विन
१३६.७ पुगीफल : सं०० (सं० पूगी फल) । सुपाड़ी। कवि० ५.७ 'पुज : सं०० (सं.)। राशि, समवाय, समूह, ढेर । मा० १.०.५ पुजा : पुंज । मा० २.२८.५ पुंडरीक : सं०० (सं.)। कमल । गी० ७.३.६ 'पुकार : सं० (सं० पूत्कार>प्रा० पुकार) । चिल्लाहट । 'जहँ तहँ करहिं पुकार ।'
मा० ६.४६ .. 'पुकार पुफारइ : पुकार+प्रए । पुकारता है । 'हाहाकार पुकार सब ।' रा०प्र०
५.५.२
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