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तुलसी शब्द-कोश
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सूझा : सूझ । (१) सूझता है, जान पड़ता है। 'चोंच भंग दुख तिन्हहि न सूझा।'
मा० ६.४०.१० (२) दिखाई पड़ा। दिसि अरु बिदिसि पंथ नहिं सूझा ।' मा०
३.१०.११ सूझि : सं०स्त्री० । सूझबूझ, समझ । 'आपनि सूझि कहौं ।' कवि० ६.२८ सूझ : सूझइ । 'देखत सुनत समुझतहू न सूझ सोई ।' कवि० ७.१२० सूझ्यौ : भूक००कए । दिखाई पड़ा । 'स्वामि न सूझ्यो नयन बीस मंदिर के से __ मोखे ।' गी० ५.१२.५। सूत : सं०० (सं.)। (१) सारथि । 'दूसरें सूत बिकल तेहि जाना।' मा०
६.४२.८ (२) चारण (ब्राह्मणी में क्षत्रिय से उत्पन्न संकरवर्ण अथवा क्षत्रिया में वैश्य से उत्पन्न) । 'मागध सूत बंदिगन गायक ।' मा० १.१६४.६ (३) (सं० सूत्र>प्रा० सुत्त) । तागा, डोरी। 'मनहुँ भानु मंडलहि संवारत धर्यो सूत बिधि सुत विचित्र मति ।' गी० ७.१७.३ (४) (फा० सूद) लाभ, मूलधन पर मिलने वाला व्याज, व्यवसाय का नफा । सुहृद समाज दगाबाजिही को सौदा सूत ।' विन० २६४.२ (५) भूक०० (सं० सुप्त>प्रा० सुत्त)। सोया हुआ,
सोता है । जिमि टिट्टिभ खाग सूत उताना ।' मा० ६.४०.६ सूतत : सूत+वकृपु० । सोता हुआ। 'महामोह निसि सूतत जाग।' मा०
६.५६.७ सूता : सूत । सोया हुआ । 'देखा बाल तहाँ पुनि सूता।' मा० १.२०१.५ सूतिहों : सूत+भ० उए । सोऊंगा । 'प्रसाद राम नाम के पसारि पाय सूतिहौं ।'
कवि० ७.६६ सूत्र : सं०० (सं०) । (१) धागा । (२) कटि भूषणविशेष । 'कल किकिनि कटि
सूत्र मनोहर ।' मा० १.३२७.४ सूत्रधर : सं०० (सं.)। (१) नाट्य निर्देशक = सूत्रधार । (२) कठपुतली नचाने
वाला जो तागा हाथ में पकड़े हुए पुतलियों को विविध गति देता है । 'सारद
दारुनारि सम स्वामी । राम सूत्रधर अंतरजामी।' मा० १.१०५.५ सदन : वि० (सं०) । विनाशक, मारने वाला । जैसे, रिपुसूदन । 'तब सुबाहु-सूदन __ जसु सखिन्ह सुनायउ ।' जा०म० ७८ सुधौ : भूकृ.पु०कए । मार डाला । 'ससि समर सूधी राहु ।' गी० १.६७.४ सूद्र : सं०० (सं० शूद्र) । अन्त्यज, वर्ण व्यवस्था में चतुर्थ वर्ग । मा० ७.६७.१ सूदु : सूद्र+कए । मा० २.१७२.६ सूध : वि०पू० (सं० शुद्ध>प्रा० सुद्ध)। (१) निष्कलुष, अमिश्रित । 'सूध दूध. ___ मुख करिअ न कोहू ।' मा० १.२७७.१ (२) सरल, निश्छल । 'काह करौं सखि
सूध सुभाऊ ।' मा० २.२०.८ सूषि : सूधी । 'जोंक सूधि तन कुटिल गति ।' दो० ४००
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