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तुलसी शब्द-कोश
सूको : भूकृ००कए० (सं० शुष्क:>प्रा० सुक्को)। सूख गया। 'साँसति सागर
सूको।' कवि० ७.६० सूख : (१) भूक.पु. (सं० शुष्क>प्रा० सुक्क सुक्ख)। सूख गया, सूखा हुआ
(नीरस) । रस रस सूख सरित सर पानी।' मा० ४.१६.५ 'सूख हाड़ ले भाग सठ।' मा० १.१२५ (२) सूखइ । सूखता है, शुष्क हो रहा है। 'कंठ सूख मुख
आव न बानी।' मा० २.३५.२ 'सूख, सूखइ : आ०ए० (सं० शुष्यति>प्रा० सुक्खाइ) । सूखता है, शुष्क होता
है। सूख रहा है । मा० २.३५.२ सूखत : वकृ०पु० । सूखता, सूखते । 'जनु जलचर गन सूखत पानी ।' मा०
२.५१.६ सूखहिं : आ०प्रब० । सूखा रहे हैं । 'सूखहिं अधर जरइ सब अंगू ।' मा० २.४०.१ सूखि : (१) पूकृ० । सूखा (कर)। 'सिअरें बचन सूखि गए कैसें ।' मा० २.७१.८
(२) भूकृस्त्री० । सूख गई । 'सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी ।' मा०
२.४४.२ सूखे : भूकृ००ब० । शुष्क हुए । 'सूखे सकुचात सब ।' कवि० ५.२० 'सूच, सूचइ : आ.प्रए० । (१) (सं० सूचयति) । सूचित करता है। (२) (सं० सूच्यते>प्रा० सुच्चइ) । सूचित होता है, प्रकट हो रहा है । 'अन अहिबातु सूत्र
जनु भाबी।' मा० २.२५.७ सूचक : वि० सं० (सं.)। सूचनादायक, प्रतीक, चिह्न, लक्षण । 'भरत आगमनु
सूचक अहहीं।' मा० २.७.५ सूचत : वकृ.पु । सूचित करता-करते । 'सूचत किरन मनोहर हासा ।' मा०
१.१६८.७ सूची : सं० स्त्री० (सं०) । सूई । 'कपट सार सूची सहस ।' दो० ४१० सूच्छम : वि० (सं० सूक्ष्म)। ह्रस्व, अणु । 'अति रसग्य सूच्छम पिपीलिका ।'
विन० १६७.३ सूझ : (१) सूझइ । 'सूझ न एक उ अंग उपाऊ।' मा० १.८.६ (२) भूक०० ।
सूझा, सूझता था । 'सूझ न आपन हाथ पसारा ।' मा० ६.५२.४ ।। 'सूझ, सूझइ : आ०प्रए० (सं० सुबुध्यते, शुध्यति>प्रा० सुज्झइ) | दिखता है;
ज्ञात होता है, शोधपूर्वक जाना जाता है; प्रकट होता है । 'मुनिहि हरिअरइ सूझ ।' मा० १.२७५ 'अगमु न कछु जग तुम्ह कहें मोहि अस सूझइ ।' पा०म०
४५ सूझत : वकृ.पु । दिखता-दिखते । 'सूझत मीचु न माय ।' दो० ४८२ सूझहिं : आप्रब० । सूझते हैं, प्रकाश में आते हैं, दिखते हैं । 'सूझहिं रामचरित
मनि मानिक ।' मा० १.१.८
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