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तुलसी शब्द-कोश
सूधियै : सीधी ही, बेलाग, स्पष्ट । 'सूधियं कहत हौं ।' कवि० ७.१६७ सूधी : वि०स्त्री० । सीधी, सरल, भोली, निश्छल । 'तू सूधी करि पाई ।' कृ०८ सूधे : सीधे क्रम में । 'उलटि जपें जारा मरा सूधे राजा राम ।' दो० ३६७ सूधे : वि.पु०ब० । सरल, निष्कपट, सीधे । 'सूधे मन सूधे बचन ।' दो० १५२ सूधो, धौ : सूध+कए। (१) सीधा, यथाक्रम। 'कोउ उलटो कोउ सूधो
जपि...।' गी० ५.४०.३ (२) निश्छल, स्पष्ट । 'सूधौ सति भाय कहें मिटति
मलीनता।' विन० २६२.४ सून : वि०+सं० (सं० शून्य>प्रा० सुण्ण)। (१) रिक्त (छूछा)। सून बीच
दसकंधर देखा।' मा० ३.२८.७ (२) गणित का अभावसूचक चिह्न । 'नाम राम
को अंक है, सब साधन हैं सून ।' दो०१० सनु : संपु० (सं०) । पुत्र । 'समीर-सूनु ।' कवि० ५.२८ सन : सूने से, में । 'सूनें हरि आनिहि पर नारी।' मा० ६.३०.६ सने : वि.पु०ब० । शून्य, रिक्त । सूने सकल दसानन पाए ।' मा० १.१८२.७ सूनो : वि०पु०कए । शून्य, रिक्त । 'सूनो सो भवनु भो ।' गी० १.६६.२ सन्य : सं०+ वि० (दे० सून) । 'सून्य भीति पर चित्र ।' विन० १११.२ सूप : (१) सं०पु० (सं०) । दाल । मा० १.३८८ (२) (सं० शूर्प>प्रा० सुप्प) ।
अन्न पछोरने (स्वच्छ करने) का उपकरण विशेष । 'भरिगे रतन पदारथ सूप
हजार हो।' रा०न० १६ सूपकारी : सं०० (सं० सूपकारिन् = सूपकार)। सुआर, भोजन बनाने का
व्यवसायी । मा० १.३२८.७ सपनखहि : शूर्पणखा को। मा० ३.२२ सूपनखा : संस्त्री० (सं० शूर्पणखा>प्रा० सुप्पणहा) । एक राक्षसी =रावण की
बहन । मा० ३.१७.३ सपनखाहि : शूर्पणखा को। 'पठ्यो सूपनखाहि लखन के पास ।' बर० २८ सूपसास्त्र : (दे० सास्त्र) भोजन बनाने का शास्त्र -पाक विद्या । मा० १.६६.४ सूपोदन : सं०० (सं० सूपोदन) । दाल-भात । 'सूपोदन सुरभी सरपि ।' मा०
१.३२८ सूम : सं०+वि० (फ्रा० शूम =मनहूस) । (१) ऐसा व्यक्ति जिसका नाम कहना
सुनना अशुभ माना जाता हो। 'कहि सुनि सकुचिअ सूम खल गत हरि संकर नाम ।' दो० ३६१ (२) कन्जूस, कृपण, अनुदार (अरबी-सूम = महँगा
बेचना)। 'बाजीगर के सूम ज्यों खल खोह न खातो।' विन० १५१.२ सूर : (१) सं०पु० (सं०) । सूर्य । 'तुलसी सूधे सूर ससि समय बिडंबित राहु।'
दो० ३६७ (२) वि० (सं० शूर>प्रा० सूर)। वीर, योद्धा । मा० ७.७० (३) (सं० सूरि)। विद्वान् । 'जोगी सूर सुतापस ग्यानी।' मा० ७.१२४.६
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