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तुलसी शब्द-कोश
सुनाज : (दे० नाज) उत्तम अन्न । दो० १६७ सुनाजु, जू : सुनाज+कए० । रुचिकर भोज्य अन्न । 'मुदित छुधित जनु पाइ
सुनाजू ।' मा० २.२३५.२ सुनात : उत्तम नाता, श्रेष्ठ सम्बन्ध । जा०म० १४८ सुनाभ : सं०० (सं०) । उत्तम नाभि (धुरी) वाला सुदर्शन चक्र । 'ले सुनाभ
बाहन तजि धाए।' विन० २४०.७ सुनाम : (१) सं०० (सं.)। उत्तम शुभ नाम । दो० ७ (२) वि० । उत्तम नाम
वाला, सरनाम, विख्यात । 'परिहरि सुरमनि सुनाम गुजा लखि लटत।' विन०
१२९.४ (यहाँ 'सुनाम' के दोनों अर्थ हैं-प्रसिद्ध सुरमणि तुल्य रामनाम)। सुनायउँ : आ०- भूकृ०+ उए । मैंने सुनाया। 'तुम्हहि सुनायउँ सोइ ।' मा०
७.६२ सुनायउ : भूकृ००कए ० । सुनाया, बतलाया। 'निज नाम सुनायउ ।' मा०
सुनायबी : भकृ०स्त्री० । सुनानी (होगी) । 'बिनय सुनायबी परि पाय ।' गी०
६.१४.१ सुनायहु : आ०-भूकृ०+मब० । तुमने सुनाया-सुनाई। जिमि यह कथा सुनायहु
मोही।' मा० १.१२७.७ सुनाये : सुनाए । हनु० १६ सुनायो : सुनायउ । मा० ६.३५:१० सुनारी : उत्तम स्त्री । कवि० ७.१८ सुनाव : (दे० नाव) । उत्तम सुखद नौका पर । 'गुरहि सुनावं चढ़ाइ सुहाई ।
मा० २.२०२.४ सुनाव सुनावइ : आ.प्रए० (सं० श्रावयति>प्रा० सुणावइ)। सुनाता है,
सुनायेगा । 'समाचार मंगल कुशल सुखद सुनावइ कोइ।' रा०प्र० ६.७.३ सुनावई : सुनावहिं । रा०न० २० सुनावउँ : आ०उए । सुनाता हूं, कह रहा हूं। 'सोउ सब कथा सुनावउँ तोही ।'
मा० ७.७४.२ सुनावत : वकृ.पु । सुनाता.ते; बतलाता-ते । मा० ७.६०.१ सुनावहिं, हीं : आ०प्रब० । सुनाते-ती हैं (कहते है)। 'रामचंद्र कर सुजस
सुनावहिं ।' मा० ६.४४.५; १.६६ छं० सुनावहु : (१) आ०मब० । सुनावो, कहो। 'अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ।' मा०
७.२.१४ (२) सुनाएहु । तुम सुनाना। 'तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूं।' मा० १.१२७.८
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