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तुलसी शब्द-कोश
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सनावा : भूकृ०० । सुनाया, बताया। 'प्रभु प्रभाउ परिजनहि सुनावा ।' मा०
७.२०.५ सुनावों : सुनावउँ । सुनाऊँ, कह लू । मा० ५.२.४ सनासीर : संपु० (सं० शुनाशीर, शुनासीर)। इन्द्र । मा० ६.१० सुनि : (१) पूकृ० । सुनकर । 'सो सुनि रामहि भा अति सोचू ।' मा० २.२२७.३
(२) सुनिअ । सुना जाता है । 'प्रभु आइ परे सुनि सायर काठे ।' कवि०
६.२८ सुनिअ, य, ए : आ०कवा०प्रए० (सं० श्रयते>प्रा० सणीअइ)। (१) सुना जाता
है। 'सब कह सुनिअ उचित फल दाता ।' मा० १.२२२.५ (२) सुना जाय ।
'सुनिअ माय मैं परम अभागी।' मा० २.६६.३ सुमित, यत : वक००कवा। सुना जाता (है)। 'सुनिअत सुरपुर जाइ ।' दो०
४६७ सुनिप्रति : वकृ०स्त्री०कवा० । सुनी जाती। 'सोभा असि कहुं सुनिअति नाहीं।'
मा० २.२२०.६ सुनिए, ये : सुनिअ । कृ० ३७ सुनिबे : भक.पु । सुनने । 'सुनिबे कहें किए कान ।' दो० २५० सुनिबो : भक००कए । सुनना (होगा)। तो सुनिबो देखिबो बहुत अब ।'
कृ० ३४ -सुनियो : आ०भ०+आज्ञा-प्रार्थना+मब० । तुम सुनना। 'मेरो सुनियो तात
सँदेसो।' गी० ३.१६.१ सुनिहउँ : आ०भ० ए० । सुनूगा। 'तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा।' मा०
७.१११.११ सुनिहहिं : आ०भ०प्रब० । सुनेंगे । 'सुनिहहिं बाल बचन मन लाई ।' मा० १.८.८ सुनिहें : सुनिहहिं । गी० १.८०.७ सुनिहौं : सुनिहउँ । 'श्रवननि और कथा नहिं सुनिहौं ।' विन० १०४.३ सुनी : (१) भूक०स्त्री० । मा० ७.५५.४ (२) सुनि । सनकर । कवि० ७.७२
(३) सुनिअ । सुना जाता है, सुनी जाती है । 'उदार दुनी न सुनी ।' मा०
७.१०१.६ सुनु : आ-आज्ञा, प्रार्थना-मए । तू सुन । 'नाम मोर सुनु कृपानिधाना।'
मा० ७.२.८ सुने : (१) भूकृ००ब० । श्रवण किये । मा० २.१७६.७ (२) सुने हुए (सुनने)।
'पढ़े सुने कर यह फल सुदर ।' मा० ७.४६.४ (३) सुनकर । 'धनु भंग सुने फरसा लिएं धाए।' कवि० १.२२,
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