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तुलसी शब्द-कोश
पाट : (१) सं०० (सं० पट्ट) । रेशम । 'रोम पाट पट अगनित जाती।' मा
२.६.३ (२) वि० । विशिष्ट, श्रेष्ठ-दे० पाटमहिषी। पाटंबर : संपु० (सं० पट्टाम्बर>प्रा० पढेंबर) । रेशमी परिधान । मा० ७.६५ ख पाटन : सं०० (सं.)। फाड़ना। मा० ३ श्लोक १ पाटमय : वि० (सं० पट्टमय) । रेशमी । 'लसत पाटमय डोरि ।' मा० १.२८८ पाटमहिषी : (सं० पट्टमहिषी=-पट्टराज्ञा)। पटरानी, बड़ी रानी। मा० १.३२४.१ पाटल : सं०० (सं.)। गुलाब से मिलता-जुलता पुष्प वृक्ष विशेष । मा०
६.६० छं० पाटि, टी : सं०स्त्री० (सं० पट्टी, पट्टिका)। तख्ता, झूले की बैठकी। 'पाटीर पाटि
बिचित्र भंवरा ।' गी० ७.१८.२ पाटियतु : वकृ०कवा०पु०कए । पाटा जाता (समतल किया जाता) । 'मसक की
पांसूरी पयोधि पाटियतु है ।' कवि० ७.६६ पाटीर : सं०० (सं.)। चन्दन । गी० ७.१८.२ पाटे : भूक००ब । पाट दिये, पूर दिये । 'ते दिसि बिदिसि गगन महि पाटे ।'
मा० ६.६३.६ पाठ : सं०पु० (सं०) । शब्दवाचन । 'पसु नाचत सुक पाठ प्रबीना। मा०
२.२६६.८ पाठक : वि० (सं.)। पढ़ाने वाला। 'गुन गति नट पाठक आधीना।' मा०
२.२६६.८ पाठीन : सं०० (सं.)। मत्स्यविशेष, पढ़िन मछली । मा० २.१६३.३ पाठीनु : पाठीन-+कए । एकाकी पाठीन । 'जन पाठीन दीन बिन पानी ।' मा०
२.३५.२ पाठु : पाठ+कए । रटन्त । 'दस आठ को पाठु कुकाठु ज्यों फारें ।' कवि०
७.१०४ पाणि : सं०० (सं०) । हाथ । मा० ३.११.४ पाणौ : (सं०-पद) हाथ में । मा० २ श्लोक ३ पात : सं० पु० (सं० पत्र>प्रा० पत्त)। पत्ता, पत्ते । 'पीपर पात सरिस मनु
डोला ।' मा० २.४५.३ (२) घास-फूस । 'ईंधनु पात किरात मिताई ।' मा०
२.२५१.२ (३) पत्तल । 'पात भरी सहरी।' कवि० २.८ पातक : सं०० (सं०) । पतन लाने वाला पतित करने वाला=पाप; अशुभ
कर्म । मा० २.२८.५ पातक तीन भागों में विभक्त हैं-(क) महापातक= ब्रह्महत्या. सुरापान, स्तेय (चोरी), गुरुपत्नी समागम तथा इन पापों के कर्ता के साथ सम्पर्क । (ख) पातक == उक्त पांचों के तुल्य पापकर्म । (ग) उपपातक= जो उक्त दोनों से न्यून हों । मा० २.१६७ का पूरा प्रसङ्ग ।
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