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तुलसी शब्द-कोश
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पाख : सं०० (सं० पक्ष>प्रा. पक्ख) । मास का अर्धभाग (शुक्ल-कृष्ण-पक्ष) ।
"सम प्रकास तम पाख दुहुँ ।' मा० १.७ ख (२) पन्द्रह दिन का समय ।
'कहह पाख महं आव न जोई ।' मा० ४.१६.५ पाखंड : सं०० (सं०) । नास्तिक, देव पर आस्था न रखने वाला। रा०प्र०
७.२.३ 'पाखंडबाद : नास्तिक मत । जिमि पाखंडबाद तें लुप्त होहिं सद ग्रंथ ।' मा० ४.१४ पाखु : पाख+कए । पन्द्रह दिन भर। 'भयउ पाखु दिन सजत समाजू ।' मा०
२.१६.३ 'पाग : संपु० (सं० पाक>प्रा० पाग)। जलाव में बनाया हुआ पक्वान्न ।
जलाव । कवि० ५.१४ पागि : पूक । पाग (जलाव) में सांध कर । 'नाना पकवान पागि पागि ढेरी
कीन्ही।' कवि० ५.२४ यागिहै : (१) आ०भ०प्रए० । वह पाग में सौंद कर बनाएगा । 'लंक पघिलाइ पाग
पागिहै।' कवि० ५.१४ (२) मए । तू पागेगा। ‘राम नाम मोदक सनेह सुधा
पागिहै ।' विन० ७०.४ 'पागी : (१) भूक स्त्री० । मिठाई के रस में डाल कर सम्पन्न की। 'बचन रचना
बीर रस पागी ।' मा० १.२६३.६ 'शुद्ध मति जुवति पति प्रेम पागी।' विन०
३६.२ (२) पागि । 'बोली बचन नीति रस पागी।' मा० ५.३६.५ 'पागे : भूक००ब० । जलाव में बनाए हुए। 'बचन.. प्रेम रस पागे ।' मा०
१.१४६.७ पाछ : अव्यय (सं० पश्चात्>प्रा० पच्छा) पीछे । 'चितयउँ पाछ उड़ात ।' मा०
७.७६ क पाछिल : वि.पु० (सं० पश्चाद्भव>प्रा० पच्छिल्ल) । पिघला (अतीत) । 'पाछिल
मोह समुझि पछिताना ।' मा० ७.६३.३ पाछिलि : पाछिली । 'प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता । मा० ३.४३.७ पाछिली : पाछिल+स्त्री० (अ० पच्छिल्ली=पच्छिल्लि)। पिछली (अतीत)।
'परिहरु पाछिली गलानि ।' विन० १६३.६ पाछिले : 'पाछिल' का रूपान्तर+ब. (प्रा० पछिलय) । पिछले । हनु० ४ पाछे, छै : पाछे। (१) बाद में । जेहिं न होइ पाछे पछिताऊ ।' मा० २.४.५
(२) पीछे, पश्चाद् देश में । 'फिर चितवा पाछे प्रभु देखा ।' मा० १.५४.५ (३) पीछे छिपने से, शरण लेने से । 'बाँचिहै न पाछै तिपुरारिहूं मरारिहूं के।'
कवि० ६.१ पाछे : क्रि०वि० (सं० पश्चात् >प्रा० पच्छा>अ० पच्छइ)। पीछे की ओर ।
पाछे पाउ न दीन्ह ।' रा०प्र० ५.७.५ ।
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