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तुलसी शब्द-कोश
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समुझाएसि : आ०-भूकृ०पु+प्रए । उसने समझाया, बताया। प्रबोध दिया।
'सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।' मा० ५.१२.५ समुझाएहु : आ० - भ०+आज्ञा, अभ्यर्थना+मब० । तुम समझाना। 'बान प्रताप
प्रभुहि समुझाएहु ।' मा० ५.२७.५ समुझायउँ : आ०-भूक+उए । मैंने समझाया। 'ता ते तात न कहि
समुझायउँ ।' मा० ३.१३.२ समुझायउ : भूक.पु०कए। समझाया, प्रबोध दिया। 'कहि बहु कथा पिता
समुशायउ ।' मा० ६.७२.६ समुझाये : समुझाए। समुझायो : समुझायउ । मा० ६.१०५.६ 'समुझाव, समुझावइ : आ०ए० (सं० सम्बोधयति>प्रा० संबुज्झावइ) ।
समझाता है, प्रबोध देता है । 'सुनि सप्रेम समुझाव निषादू ।' मा० २.२०१.७ समुझावउँ : आ.उए । समझाता हूं, प्रबोध (या सान्त्वना) देता हूं। कोटि भांति
समुझावउँ मनु न लहइ विश्राम ।' मा० ७.८२ समुझावत : वकृ००। समझाता-ते। 'समुझावत सब सचिव सयाने ।' मा०
१.३३८.७ समुझावति : वकृ०स्त्री० । समझाती, प्रबोध देती (शान्त करती)। बिकल बिलोकि
सुतहि समुझावति ।' मा० २.१६१.१ समुझावहिं : आप्रब० । समझाते हैं, बोध देते हैं (विवेचित कर बताते हैं)।
'कृपासिंधु बहु बिधि समुझावहिं ।' मा० २.८३.४ समझावहिंगे : आ०भ०५०प्रब० । समझाएंगे, प्रबोध देंगे । गी० ५.१०.३ समझावा : भूक०पु । प्रबोधित किया। मा० ७.६२.७ समुझावै : समुझावइ । जा०म० ७५ समझावौं : समझावउँ । समझाऊँ, समझा सकता हूं। 'कवन भांति समुझावौं तोही।'
मा० ७.६१.३ समुझि : (१) सं०स्त्री० (सं० सम्बुद्धि>प्रा० संबुज्झि)। समझ, विवेकशक्ति ।
सूझबूझ । 'अपनी समुझि साधु सुचि को भा ।' मा० २.२६१.२ (२) पू० । समझकर । 'घरी कुघरी समुझि जियें देखू ।' मा० २.२६.८ (३) आ० - आज्ञा-अभ्यर्थना- मए । तू समझ, विचार कर । 'समुझि धौं जिय
भामिनी।' मा० २.५० छं० समझिअ, य : आ०कवा०प्रए । समझ लीजिए, जान लिया जाय । 'नृप समुझिअ
मन माहिं ।' मा० २३३ समुझिऐ, ये : 'अवसि समुझिए आपु।' दो० ४८६
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